कैनेडा में हुए संघीय चुनावों में लिबरल पार्टी और प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने बड़ी जीत दर्ज की है। हालांकि वे पूर्ण बहुमत से अभी कुछ सीटें दूर हैं, लेकिन विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी ने हार मान ली है। ये जीत लिबरल पार्टी के लिए बड़ा उलटफेर मानी जा रही है, क्योंकि कुछ समय पहले तक पार्टी को भारी पराजय की आशंका थी। पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के समय भारत-कैनेडा संबंधों में खटास आई थी, जिसे अब सुधारने की उम्मीद जगती है।
अमेरिका पर कार्नी का तीखा हमला
अपनी विजय भाषण में मार्क कार्नी ने अमेरिका को आड़े हाथों लिया और कहा, “हम अमेरिका के धोखे से उबर चुके हैं, लेकिन हमें इससे सीख नहीं भूलनी चाहिए। अमेरिका हमारे संसाधनों, भूमि और पानी पर अधिकार चाहता है। लेकिन हम कभी झुकेंगे नहीं।”
भारत-कैनेडा संबंधों की बहाली की उम्मीद
जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के रिश्तों में तीखा तनाव देखा गया। किसान आंदोलन पर ट्रूडो की टिप्पणी, खालिस्तानी समर्थन पर नरमी और आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत पर लगाए गए आरोपों ने हालात को और बिगाड़ा। भारत ने इन आरोपों को ‘निराधार’ बताया था और ट्रूडो को वोट बैंक की राजनीति करने वाला कहा था।
अब कार्नी के सत्ता में आने से रिश्तों में नई ऊर्जा आ सकती है। उन्होंने भारत को “अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार” बताया और कहा कि भारत और कैनेडा के बीच संबंध बहुआयामी हैं – व्यक्तिगत, आर्थिक और रणनीतिक। चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने भारत जैसे ‘समान सोच वाले’ देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने की बात कही थी।
भारतीय प्रवासी और छात्रों पर असर
कैनेडा में लगभग 30 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं जिनमें से बड़ी संख्या में छात्र और कामगार शामिल हैं। अकेले पंजाब से लगभग 4.27 लाख छात्र कैनेडा में पढ़ाई कर रहे हैं जो कैनेडा की अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का योगदान देते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री ट्रूडो की सरकार ने आप्रवासन पर नियंत्रण की नीति अपनाई थी। लेकिन कार्नी एक अनुभवी अर्थशास्त्री हैं और उन्हें छात्रों और पेशेवरों के आर्थिक योगदान की समझ है। इससे संभावना है कि आप्रवासन नीति में कुछ नरमी आ सकती है।
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (CEPA) की संभावनाएं
भारत और कैनेडा के बीच वर्षों से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी CEPA पर चर्चा चल रही है। 2008 में इसकी सिफारिश हुई थी और 2010 में दोनों सरकारों ने बातचीत शुरू की थी। लेकिन 2023 में हरदीप सिंह निज्जर मामले के बाद बातचीत रुक गई। अब कार्नी के आने के बाद उम्मीद है कि CEPA पर बातचीत फिर शुरू हो सकती है।
व्यापार संबंधों की मजबूती
राजनयिक तनाव के बावजूद भारत और कैनेडा के बीच व्यापार पर कोई खास असर नहीं पड़ा। 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार $8.3 अरब डॉलर था जो 2023-24 में बढ़कर $8.4 अरब हो गया। भारत ने कैनेडा से $4.6 अरब का आयात किया जबकि निर्यात $3.8 अरब रहा।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के मुताबिक, “राजनयिक तनाव के बावजूद व्यापार में स्थिरता बनी रही है, जिससे पता चलता है कि राजनीतिक मतभेद जरूरी नहीं कि आर्थिक संबंधों को नुकसान पहुँचाएं।”
निष्कर्ष
मार्क कार्नी की जीत केवल कैनेडा की राजनीति के लिए ही नहीं, भारत के साथ उसके भविष्य के संबंधों के लिए भी एक नए युग की शुरुआत हो सकती है। यदि दोनों देश पुराने विवादों को पीछे छोड़कर परस्पर सम्मान और साझा मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ते हैं, तो यह केवल राजनयिक ही नहीं बल्कि आर्थिक स्तर पर भी लाभकारी सिद्ध होगा।