नई दिल्ली: भारत की रणनीतिक चुप्पी से पाकिस्तान में मची खलबली
इंडस जल संधि पर भारत द्वारा लगाई गई अस्थायी रोक से पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई हैं। केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा ने NDTV को बताया कि इस संधि के निलंबन के बाद भारत के पास ऐसे कई विकल्प हैं जो पाकिस्तान को सीधा प्रभावित कर सकते हैं।
अब कोई ज़रूरत नहीं सूचनाएं साझा करने की
वोहरा ने स्पष्ट किया कि अब भारत को पाकिस्तान के साथ जल प्रवाह और भंडारण संबंधी कोई भी जानकारी साझा करने की बाध्यता नहीं है। इस परिवर्तन से पाकिस्तान की जल योजना और आपातकालीन रणनीति पर गहरा असर पड़ेगा, खासकर मानसून और बाढ़ की स्थिति में।
भारत सरकार ने यह कदम पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा 26 पर्यटकों की हत्या के बाद उठाया। यह संदेश केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है।
संधि समाप्ति की चेतावनी भी दी गई
पूर्व जल आयोग प्रमुख का मानना है कि यदि पाकिस्तान का रवैया आक्रामक और नकारात्मक बना रहता है, तो भारत इस संधि को पूरी तरह से समाप्त करने का अधिकार भी रखता है। वर्तमान में, भारत इंडस नदी प्रणाली के भीतर जल भंडारण संरचना विकसित करने पर काम कर सकता है, जो भविष्य में और भी मजबूत नियंत्रण की नींव बन सकती है।
इंडस जल संधि: ऐतिहासिक समझौते की झलक
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि नौ वर्षों की जटिल वार्ता के बाद बनी थी, जिसमें विश्व बैंक भी हस्ताक्षरकर्ता था। यह संधि छह अंतरराष्ट्रीय नदियों के जल उपयोग को लेकर सहयोग और सूचना आदान-प्रदान की प्रक्रिया को परिभाषित करती है।
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पूर्वी नदियाँ – सतलुज, ब्यास और रावी – जिनसे लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी भारत को निर्बाध उपयोग के लिए आवंटित है।
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पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब – जिनसे लगभग 135 MAF पानी पाकिस्तान को दिया गया है।
भारत को हाइड्रो प्रोजेक्ट्स का अधिकार, लेकिन सीमाएं तय
इस संधि के अनुसार भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाएं बनाने का अधिकार है, बशर्ते वे विशिष्ट डिजाइन मानदंडों और संचालन नियमों का पालन करें। वहीं, पाकिस्तान को इन परियोजनाओं की डिजाइन पर आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार भी प्राप्त है।
सालाना बैठकें अब संदेह के घेरे में
संधि की एक शर्त यह भी है कि दोनों देशों के जल आयुक्तों को साल में कम से कम एक बार बारी-बारी भारत और पाकिस्तान में बैठक करनी होती है। हालांकि, मार्च 2020 में दिल्ली में प्रस्तावित बैठक COVID-19 महामारी के कारण रद्द कर दी गई थी, और तब से यह प्रक्रिया भी ठंडी पड़ी हुई है।
निष्कर्ष: जलराजनीति के मोर्चे पर भारत का नया रुख
भारत का यह कदम सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक नीतिगत बदलाव की ओर संकेत करता है। अब जब भारत ने इस संधि को ‘निलंबित’ किया है, तो आने वाले दिनों में पाकिस्तान की जल सुरक्षा और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर देखने को मिल सकता है। यह स्पष्ट है कि अब भारत जल को कूटनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करने के लिए तैयार है।