आस्था जप और तप के पर्व छठ की शुरुआत अब होने ही वाली है चार दिन के इस जप और तप के पर्व के विषय में जानते हैं।
क्यों है छठ आस्था जप और तप का व्रत
छठ पर्व मात्र एक त्यौहार ही नहीं है एक अनुष्ठान है जिसमें न केवल व्रत करने वाला बल्कि उसका पूरा परिवार उसके सगे संबंधी उसके सहयोगी इस व्रत में उसके भागी बनते हैं। वर्ष 2025 में छठ पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर शनिवार के दिन से होगी। इसी दिन से व्रत करने वाला व्यक्ति अपनी साधना जप और तप में लग जाता है। भीतर के शोर को शांत कर जप और तप करना ना उस जमाने में आसान था न इस जमाने में आसान है लेकिन कोशिश तो सभी कर ही सकते हैं तो बस व्रत करने वाले व्रती इसी कोशिश में नहाय खाय वाले दिन से लग जाते हैं। किसी भी चीज की शुरुआत शुद्धता से ही होती है। इसलिए सबसे पहले शुरुआत शुद्धता स्वच्छता के प्रतीक नहाए खाए के द्वारा ही होती है।
छठ पर्व चार दिन का व्रत
छठ का यह पर्व होता है 4 दिन का व्रत, बल्कि यह कहिए इसकी तैयारी दीपावली के साथ ही शुरू हो जाती है। जिस तरह से उत्तर भारत के लोग दीपावली की तैयारी करते हैं। इसी तरह से बिहार के लोग छठ पर्व की तैयारी करते हैं। बिहार जाने वाली ट्रेन दीपावली पर भले ही ठसाठस भरी ना हो लेकिन छठ पर्व पर फुल ही हो जाती है। लोग अपनी दीपावली भले ही दूसरे शहर में मना लें लेकिन छठ पर्व अपने ही गांव, अपने ही देश में मनाना चाहते हैं। इस दिन हर चीज शुद्ध और नयी होती है चाहे वह व्रत करने वाले के कपड़े हो या बर्तन या फिर भोजन सामग्री सब कुछ नया होता है।
क्या होता है नहाए खाए के दिन
नहाए खाए के दिन व्रती व्यक्ति नहा धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भगवान सूरज को अर्घ्य देकर अपने दिन की शुरुआत करते हैं। कल 25 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 6:28 पर होगा। इस दिन सादा और सात्विक भोजन किया जाता है ताकि अगले दो दिनों तक के व्रत की ऊर्जा ग्रहण की जा सके। इस दिन लहसुन प्याज भोजन में नहीं डाला जाता है। दिवाली के कारण छठ की जो तैयारीयां रुकी हुई थी नहाए खाय के दिन से वो शुरू हो जातीं हैं। इस पूरे पर्व में नए कपड़े नई चीज प्रयोग में आती है इसलिए प्रति व्यक्ति अपनी शादी तैयारी नहाए खाकर दिन ही करता है। अगर उसे नए कपड़े खरीदने होते हैं तो वह नहाए खाय के दिन ही खरीदता है।
इस दिन पूजा के बर्तन भोजन बनाने की सामग्री भोजन बनाने के बर्तन सभी एक जगह धोकर इकट्ठा कर लिये जाते हैं ताकि व्रत वाले दिन प्रति व्यक्ति को ज्यादा काम करके भूख प्यास ना लगे। सुहागन स्त्रियां इस दिन बाल धोकर स्नान करती हैं। सर मैं सिंदूर धारण करती हैं और पैर में महावर रचाती हैं। पहले बिहार में छठ पर हाथों में मेहंदी नहीं लगाई जाती थी लेकिन अब सुहागन स्त्रियां छठ के दिन भी हाथों में मेहंदी लगाकर खुश होती हैं। पहले गांव में महावर रचाने वाली नाइन आकर घर की बहू बेटियों और सुहागन स्त्रियों को एक साथ महावर रचा देती थी। लेकिन अभी स्त्रियां महावत की जगह पैरों में भी मेहंदी लगाना पसंद करने लगी है लेकिन फिर भी देश की कुछ गानों में यह प्रथा अभी भी विराजमान है।
क्या खाया जाता है नहाए खाए के दिन
नहाए खाए के दिन कुछ लोगों के घर में अरहर की दाल चावल और लौकी की सब्जी खाई जाती है तो कुछ लोगों के घर पर चने की दाल और कद्दू की सब्जी चावल के साथ खाई जाती है। जब भोजन ईश्वर को समर्पित करके ग्रहण किया जाता है तो उसका स्वाद ही दूसरा होता है। कुछ व्यक्ति इस दिन भी एक ही समय भोजन करते हैं तो कुछ व्यक्ति दोपहर में लौकी की सब्जी और रोटी खाते हैं तो शाम को अरहर की दाल और चावल लौकी की सब्जी के साथ खाए जाते हैं।
क्यों खाया जाता है नहाए खाए के दिन शुद्ध और सात्विक भोजन
नहीं खाई के दिन शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। भोजन बनाने से पूर्व रसोई घर की सफाई की जाती है आज ही के दिन से छत पर की शुरुआत होती है और छठी मां व्रती के शरीर में निवास करती हैं। इस दिन सूर्योदय में भगवान शिव को प्रणाम करने से आशीर्वाद लेने से जीवन की सभी प्रार्थना पूरी होती है। सुहागन स्त्रियां बड़े चाव से छठ के गीत गाने की शुरुआत करती हैं।