माघ के महीने में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। आइये जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
कब है उत्पन्ना एकादशी?
15 नवंबर शनिवार के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत होगा। इस व्रत का प्रारंभ शनिवार दोपहर 12.49 मिनट पर होगा।रविवार 16 नवंबर को 2.37 मिनट पर व्रत का उद्यापन किया जायेगा।
कब है उत्पन्ना एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त?
इस बार उत्पन्ना एकादशी के शुभ मुहूर्त उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र,विष्कुठ योग और अभिजीत मुहूर्त में बन रहे हैं। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:31 मिनट से 5: 23 मिनट तक रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 1:39 से 2:24 तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त शाम 5:22 मिनट से 5: 48 तक होगा। निशिता मुहूर्त रात 11: 23 से 12:14 तक होगा।
क्या है उत्पन्ना एकादशी की कथा?
कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को उत्पन्ना एकादशी की कथा बताई थी। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि मूर नामक एक दानव था जिसने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर इंद्र समेत सभी देवताओं को पराजित कर दिया था। जब सब देवता भगवान शिव की शरण में गए तब उन्होंने उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने के लिए कहा। देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर देखा तो वह क्षीर सागर में योग निद्रा में थे। भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना सुनकर अपने नेत्र खोलें और उनसे वहां आने का कारण पूछा। तब देवराज इंद्र ने कहा कि एक राक्षस का पुत्र मूर देवताओं को स्वर्ग से निकालकर स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा है।
भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया कि मैं उससे रक्षा करूंगा। भगवान विष्णु और दैत्यराज मूर के बीच 10000 वर्षों तक युद्ध चला। भगवान विष्णु विश्राम के लिए हेमवती नामक एक गुफा में जाकर योग निद्रा में लीन हो गए। उन्हें सोया जान जब मूर उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ा तभी भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्ना देवी उत्पन्न हुई। उत्पन्ना देवी ने युद्ध में मूर का संघार कर देवताओं को उनका स्वर्ग वापस दिलाया। जब भगवान विष्णु योग निद्रा से जागे तो उन्होंने उत्पन्न देवी से कहा आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है इसलिए आज से इस दिन को उत्प्रदाय एकादशी के नाम से जाना जाएगा। तभी से इस दिन को उत्पन्न एकादशी के नाम से जाना जाता है।
उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह उठ कर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। घर की मंदिर की साफ सफाई कर ले़। बैठने के स्थान झाड़ू पोछा लगाएं। भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें। गंगाजल से अभिषेक हराकर भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। मां लक्ष्मी को तुलसी ताल अर्पित नहीं किया जाता। अगर हो सके तो पंचामृत का भोग लगाएं। भगवान विष्णु की विष्णु सहस्त्रनाम और मां लक्ष्मी के अनकधारा स्रोत और श्री सुक्तम का पाठ अवश्य करें। कहां जाता है कि जिस घर में विश्व सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है वहां भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती है। उसे घर में सुख, शांति, समृद्धि, संपन्नता बनी रहती है। मां लक्ष्मी के श्री सुक्तम का पाठ घर में वैभव और समृद्धि लाता है।
कहां जाता है की जो स्त्री कनकधारा स्त्रोत का पाठ प्रतिदिन सुबह करती है उसके पास धन संपदा और आभूषणों का वैभव होता है। हमेशा उसके आभूषण उसके पास ही रहते हैं।उसका सोना कभी भी नहीं खोता।
क्या न करें एकादशी के दिन
एकादशी के दिन तामसिक भोजन का प्रयोग ना करें। तामसिक भोजन मांस मदिरा का प्रयोग इस दिन वर्जित है।हो सके तो इस दिन प्याज लहसुन बिना खाए कहां जाता है की एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता।
एकादशी के दिन किसी को अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग ना करें।एकादशी वाले दिन किसी जरूरतमंद का कभी अपमान ना करें। उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसीदास अवश्य अर्पित करें। लेकिन ध्यान रहे कि इस दिन तुलसी दल तोड़ना वर्जित है इसलिए एक दिन पहले ही तुलसीदास तोड़कर गंगाजल में रख ले एकादशी के दिन भगवान विष्णु के सामने घी या तेल का दीपक अवश्य जलाएं।