भारत ने आज एक ऐसी महान विभूति को खो दिया, जिसकी पूरी जीवन-यात्रा हरी-भरी धरती के नाम समर्पित थी।
Saalumarada Thimmakka dies की खबर के साथ ही देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। “वृक्ष-माता” के नाम से मशहूर तिम्मक्का सिर्फ पर्यावरण संरक्षक नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा थीं जिनकी सादगी, करुणा और समर्पण ने करोड़ों भारतीयों के दिलों को छुआ।
उनकी मृत्यु बेंगलुरु के एक अस्पताल में हुई, और इसके साथ ही भारत ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र की एक चमकती हुई रोशनी को खो दिया। लेकिन उनके पीछे छोड़ी हुई हरियाली की विरासत हमेशा जीवित रहेगी।
🌳 Saalumarada Thimmakka Dies: क्यों तिम्मक्का थीं भारत की अनमोल धरोहर?
तिम्मक्का को “Saalumarada” उपनाम इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 384 बरगद के पेड़ लगाए और उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला। “सालु” का अर्थ है — पंक्तियाँ, और “मरादा” का अर्थ — पेड़।
यह नाम उनकी उस हरियाली से भरे तप और तपस्या की पहचान था जिसने एक बंजर सड़क को एक घने, लहलहाते वृक्ष-पथ में बदल दिया।
उनके निधन (Saalumarada Thimmakka dies) ने पूरे समाज को यह याद दिलाया कि सच्ची महानता पद, पैसे या शक्ति में नहीं, बल्कि जीवन से जुड़ी संवेदनाओं और करुणा में होती है।
🌿 Padma Shri का भावुक पल — ‘वृक्ष-माता’ ने राष्ट्रपति को दिया था आशीर्वाद
भारत के लोग आज भी वह दृश्य नहीं भूलते जब 2019 में Padma Shri पुरस्कार लेते समय तिम्मक्का ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को आशीर्वाद दिया था।
साड़ी में लिपटी, सौ साल से ऊपर की उम्र वाली वह आध्यात्मिक महिला जब राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने लगीं, वह क्षण अमर हो गया।
पूरे राष्ट्र ने महसूस किया कि वह केवल एक पर्यावरण कार्यकर्ता नहीं, बल्कि “माँ” हैं — धरती की, पेड़ों की और इस देश की।
🌱 हुलीकल गाँव से वैश्विक पहचान तक: तिम्मक्का की प्रेरक यात्रा
तिम्मक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकुर ज़िले के हुलीकल गाँव में हुआ था।
गरीबी थी, साधन नहीं थे, पर मन में करुणा और संघर्ष की शक्ति थी।
वह और उनके पति चिकाैया संतान सुख से वंचित थे।
लेकिन उन्होंने दुख को जीवन का अंत नहीं बनने दिया —
बल्कि पेड़ों को अपना बच्चा मानकर एक नई यात्रा शुरू की।
उनकी कहानी यह साबित करती है कि जीवन में बड़ी उपलब्धियों के लिए धन नहीं, बल्कि दृढ़ता और निस्वार्थ भावना ही पर्याप्त है।
🌳 384 बरगद के पेड़ — एक हरी-भरी संतान
तिम्मक्का और उनके पति हर दिन कई-कई किलोमीटर चलते, पानी ढोते, पौधों को सींचते, और उन्हें धूप-बारिश से बचाते।
इन पौधों को उन्होंने उसी तरह पाला जैसे माँ अपने बच्चे को पालती है।
इन 384 बरगदों से न सिर्फ एक सड़क हरी हुई, बल्कि:
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स्थानीय जलवायु सुधरी
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मिट्टी का कटाव कम हुआ
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यात्रियों को छाया मिली
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पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए नया आवास बना
यह वह ‘जीवित स्मारक’ है जिसे दुनिया कभी नहीं भूल सकती।
🌿 ग्रासरूट पर्यावरणवाद की प्रतीक
तिम्मक्का ने कभी पर्यावरण को ‘सरकारी योजना’ नहीं समझा।
उनके लिए प्रकृति परिवार थी—
जिसकी रक्षा नैतिक कर्तव्य है, विकल्प नहीं।
उन्होंने भारत में कई पीढ़ियों को सिखाया:
“प्रकृति की रक्षा के लिए डिग्री नहीं, सिर्फ संवेदनशीलता चाहिए।”
उनकी प्रेरणा से कई राज्यों में
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स्कूलों ने वृक्षारोपण अभियान चलाए
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गाँवों में सामुदायिक पौधारोपण शुरू हुआ
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युवाओं में हरियाली के प्रति जागरूकता बढ़ी
🌱 सरकारी सम्मान और सादगी की मिसाल
भले ही उन्हें देश-विदेश से सम्मान मिलते रहे,
परन्तु तिम्मक्का हमेशा सादगी और विनम्रता की मूरत बनी रहीं।
उनके प्रमुख सम्मान:
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Padma Shri (2019)
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राज्य सम्मान
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ग्रीन अवार्ड
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पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान
पर पुरस्कारों ने उन्हें कभी बदला नहीं।
वह आजीवन सरल जीवन, मिट्टी की खुशबू और पेड़ों की गोद में ही रहीं।
🌳 Saalumarada Thimmakka Dies: लेकिन उनकी विरासत अमर है
तिम्मक्का अब इस दुनिया से चली गईं, पर:
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उनका planted पेड़ों का 384-पेड़ों का जंगल
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उनकी पर्यावरणीय विचारधारा
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उनकी सरलता और आशीर्वाद
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उनका संदेश—
“एक पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ”
— हमेशा ज़िंदा रहेगा।
तिम्मक्का की मृत्यु, “Saalumarada Thimmakka dies”, केवल एक खबर नहीं, बल्कि एक युग के अंत और एक सदाबहार विचार की शुरुआत है।
🌿 तिम्मक्का से सीख — क्या हम उनकी राह पर चल सकते हैं?
आज जब दुनिया जलवायु संकट से जूझ रही है,
जब तापमान बढ़ रहा है,
जब पेड़ कट रहे हैं,
तभी तिम्मक्का जैसी एक महिला हमें राह दिखाती हैं:
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एक व्यक्ति भी दुनिया बदल सकता है
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पेड़ लगाना सबसे बड़ा दान है
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प्रकृति की सेवा ही सच्ची देश-सेवा है
अगर भारत के हर नागरिक ने तिम्मक्का की तरह अपने जीवन में केवल 5 पेड़ भी लगाए,
तो हम आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और हरी धरती दे सकेंगे।
🌱 अंतिम विदाई: एक हरियाली भरे अध्याय का समापन
Saalumarada Thimmakka dies —
लेकिन वह हमारा सच, हमारी प्रेरणा, और हमारी हरियाली की माँ हमेशा रहेंगी।
उनकी अंतिम यात्रा में शामिल लोगों की आँखें नम थीं,
पर गर्व भी था कि उन्होंने उस महिला को देखा
जिसने अकेले ही वह काम किया जो कई सरकारें मिलकर भी नहीं कर पातीं —
धरती को जीवित रखना।
🌿 निष्कर्ष: तिम्मक्का, आप हमेशा अमर रहेंगी
भारत आज गमगीन है,
लेकिन साथ ही सौभाग्यशाली भी कि उसे तिम्मक्का जैसी “वृक्ष-माता” मिलीं।
पेड़ों के हर पत्ते में,
हर हवा के झोंके में,
और हर हरियाली में
उनकी आत्मा जीवित रहेगी।
सालुमरदा तिम्मक्का — धरती की सच्ची माँ, आपको कोटि-कोटि नमन।