सऊदी अरब में हुआ कफाला सिस्टम का अंत 

सऊदी अरब में हुआ कफाला सिस्टम का अंत 

सऊदी अरब में काफला सिस्टम का अंत हो चुका है अब विदेशी मजदूर का पासपोर्ट जप्त नहीं हो पाएगा यह जानते हैं क्या था यह कफाला सिस्टम 

सऊदी अरब में हुआ कफाला सिस्टम का अंत

कफाला प्रथा एक ऐसी प्रथा है जो कि सऊदी अरब में 70 साल से चली आ रही थी। इस प्रथा के अंतर्गत विदेशी मजदूरों का पासपोर्ट उनके मालिक अपने पास ही ले कर कर रख लेते थे। इस प्रथा के अंत होने की शुरुआत जनवरी 2025 में हुई थी जिसे जून 2025 में एक आकार दिया गया था। इस सिस्टम के करण 1.3 करोड़ से भी अधिक मजदूर परेशान थे। इन मजदूरों में अधिकतर भारत, नेपाल, बांग्लादेश और फिलीपींस जैसे गरीब देश के निवासी हैं।

आधुनिक समाज में क्या है काफला सिस्टम का मतलब 

कफाला सिस्टम एक तरह से बंधुआ मजदूरी ही था जिसमें एक व्यक्ति अपने देश से दूसरे देश जा तो सकता था पर उसका वापस लौटना उसके मालिकों पर ही निर्भर करता था। कफाला सिस्टम के अंतर्गत जो व्यक्ति किसी विदेशी मजदूर को अपने देश में लाता था वही उस मजदूर के वहां रहने और काम करने के लिए जिम्मेदार भी होता था। अरबी में कफाला शब्द कफील नामक शब्द से बना है। जिसका अर्थ होता है जिम्मेदार व्यक्ति। जब अरब देशों में तेल की मांग बढ़ने लगी तो मजदूरों की आवश्यकता और पड़ने लगी लेकिन मजदूरों को अपने देश में लाने ले जाने और काम करने के लिए एक नियंत्रण की आवश्यकता थी। मजदूरों को नियंत्रित करने के लिए ही काफला सिस्टम बनाया गया। लेकिन इस सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही  स्पॉन्सर व्यक्ति को बहुत अधिक रिस्पांसिबिलिटी मिली जिसका बाद में नाजायज फायदा भी उठाया जाने लगा।

क्या है काफला सिस्टम की कमजोरीयां

काफला सिस्टम के अंतर्गत जब कोई मजदूर अरब देशों में काम करने के लिए आता है तो वह इसी सिस्टम के अंतर्गत इन देशों में आ सकता है उस व्यक्ति के ऊपर अरब देशों के नियमों कानून भी लागू किए जाते हैं। उस मजदूर व्यक्ति की जिम्मेदारी कफील व्यक्ति लेता है। कफील व्यक्ति बताता है कि मजदूर को क्या कितना और कितने घंटे तक काम करना है। उस व्यक्ति की सैलरी कितनी होगी उसके रहने की जगह भी कफील व्यक्ति ही निश्चित करता है। कफील व्यक्ति के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की जा सकती। मजदूर व्यक्ति कफील के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकते थे ना ही वो अपनी नौकरी छोड़ सकते थे और नहीं उस देश को छोड़ सकते थे एक तरीके से अरब में मजदूर बंधुआ मजदूरी किया करते थे।

काफला सिस्टम के अंतर्गत मजदूर अपनी नौकरी नहीं बदल सकते थे 

काफला सिस्टम के अंतर्गत मजदूरों को अपनी नौकरी बदलने की आजादी नहीं थी अगर मलिक उनके साथ गुलाम जैसा व्यवहार करता था। उनसे 16 17 घंटे भी काम कराता था या काम करने के बदले तनख्वाह नहीं देता था या कम तनख्वाह देता था तब भी मजदूर अपनी नौकरी नहीं बदल सकते थे। किसी भी नयी नौकरी के लिए मजदूरों को अपने कफील के इजाजत नामे की आवश्यकता थी। अगर कोई मजदूर बिना अपने कफील की इजाजत के अपनी नौकरी छोड़ना था तो उसे अवैध प्रवासी मानकर गिरफ्तार कर लिया जाता था। 

मजदूर वापस अपने देश नहीं जा सकते थे 

कफील सिस्टम के अंतर्गत बिना अपने कफील की स्वीकृति के मजदूर वापस अपने देश नहीं जा सकते थे। किसी आपातकाल में, परिवार में किसी दुर्घटना के होने पर भी वह अपने कफील की मर्जी के बिना अपने देश वापस नहीं जा सकते थे उन्हें देश से बाहर जाने के लिए अपने नियोक्ता से एग्जिट वीजा मंजूर कराने की आवश्यकता होती थी लेकिन मालिक अधिकतर केसों में इस वीजा को ना मंजूर कर देते थे जिससे कर्मचारी बंधक बने रहते थे। मजदूरों का वीजा भी कफील अपने पास जब्त कर लेते थे। पहचान पत्र न होने के कारण मजदूर उस देश में फंसे रहते थे। मजदूरों का पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता था।

मानवाधिकार संगठन ने बदला परिस्थितियों को 

कफाला सिस्टम अब मानवाधिकार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानून की मेहनत के कारण ही बदला गया। मानवाधिकार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानून संगठन काफी लंबे समय से काफला सिस्टम को बदलने के लिए प्रयास करते रहे हैं। वो इसे आधुनिक गुलामी कहते हैं। लंबे समय से वो काफला सिस्टम की बुराइयों को सभी के आगे रख रहे थे। इस सिस्टम के अंतर्गत मजदूर अपने बुनियादी अधिकारों को हासिल करने में भी असफल थे। इस कानून ने श्रमिकों के बुनियादी अधिकारों को छीन लिया था और श्रम और मानव तस्करी को भी बढ़ावा दिया था।

 

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