🔎 मुख्य बिंदु:
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वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
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मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई बोले – “संसद से पारित कानून में हस्तक्षेप तभी जब असंवैधानिकता स्पष्ट हो”
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वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने कानून को बताया पक्षपातपूर्ण
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केंद्र सरकार ने तीन मुद्दों पर जवाब दाखिल किया, याचिकाकर्ताओं ने उठाए अतिरिक्त सवाल
🧾 वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए जी मसीह शामिल हैं, वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। यह अधिनियम हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया है और इसे लेकर देशभर में चर्चा गर्म है।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “जब तक कोई स्पष्ट रूप से असंवैधानिक मामला सामने न आए, तब तक अदालत संसद द्वारा पारित कानूनों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”
⚖️ याचिकाकर्ताओं की आपत्ति और केंद्र का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने तीन मुख्य बिंदुओं — वक्फ बाय यूज़र, वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति, और सरकारी जमीन की पहचान — पर जवाब दे दिया है। उनका आग्रह था कि सुनवाई केवल इन्हीं मुद्दों तक सीमित रखी जाए।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध किया। सिब्बल ने कहा, “इस अधिनियम के जरिए बिना प्रक्रिया के वक्फ संपत्तियां छीनी जा सकती हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि नया कानून कहता है कि केवल ऐसा व्यक्ति जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हो, वह वक्फ बना सकता है।
📌 वक्फ संपत्तियों के भविष्य पर चिंता
सिब्बल ने कहा कि नया कानून वक्फ संपत्तियों को खत्म करने की दिशा में एक साजिश है। उन्होंने यह तर्क भी दिया कि यदि कोई स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित घोषित कर दिया जाता है, तो उसकी वक्फ की मान्यता स्वतः समाप्त हो जाती है।
उदाहरणस्वरूप, संभल की जामा मस्जिद का उल्लेख किया गया जो अब वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी यदि उस पर कोई विवाद खड़ा होता है।
🕌 मस्जिद बनाम मंदिर: फंडिंग पर सवाल
सिब्बल ने मस्जिदों और मंदिरों की तुलना करते हुए कहा,
“मंदिरों में चढ़ावे से करोड़ों का कोष बनता है, लेकिन मस्जिदों और कब्रिस्तानों के पास ऐसा कोई फंड नहीं होता। मस्जिदों की देखरेख सरकार नहीं कर सकती क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता।”
उन्होंने बताया कि “लोग जीवन के अंत में अपनी निजी संपत्तियां वक्फ करते हैं क्योंकि मस्जिदों और कब्रिस्तानों का संचालन निजी प्रयासों से ही होता है।”
📢 निष्कर्ष
वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 को लेकर चल रही बहस भारत की न्यायिक और संवैधानिक प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां सरकार इस कानून को आतंकवाद और अवैध कब्जों से निपटने का माध्यम मान रही है, वहीं विपक्षी पक्ष इसे धार्मिक संपत्तियों के अधिकारों पर हमला बता रहा है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून की संवैधानिक वैधता पर क्या अंतिम फैसला देती है।