राज्यसभा में बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच, सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के उनके नेतृत्व के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर करारा हमला किया। महिला पत्रकारों के एक कार्यक्रम में बोलते हुए, श्री धनखड़ ने प्रस्ताव को प्रक्रियात्मक रूप से दोषपूर्ण करार दिया और इसे एक अनुपयुक्त उपकरण के साथ जटिल कार्य करने की कोशिश के रूप में बताया। उन्होंने कहा, “बाईपास सर्जरी के लिए कभी सब्जी काटने वाले चाकू का इस्तेमाल मत करो।”
जंग लगा चाकू और जल्दबाजी में तैयार प्रस्ताव
अपने बयान में, श्री धनखड़ ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि प्रस्ताव जल्दबाजी में तैयार किया गया और कई त्रुटियों से भरा हुआ था। “यह प्रस्ताव तो सब्जी काटने वाला चाकू भी नहीं था,” उन्होंने कहा। “यह जंग लगा हुआ था। जब मैंने इसे पढ़ा, तो मैं हैरान रह गया।”
यह टिप्पणी उस समय आई जब उपसभापति हरिवंश ने प्रस्ताव को प्रक्रियात्मक खामियों के कारण खारिज कर दिया। इन खामियों में श्री धनखड़ के नाम की गलत वर्तनी और 14-दिन की अनिवार्य सूचना अवधि का अनुपालन न होना शामिल था। हरिवंश ने आगे कहा कि यह प्रस्ताव न तो गंभीर था और न ही ईमानदार प्रयास था, बल्कि इसे सभापति और उपराष्ट्रपति के खिलाफ एक “कथा” बनाने के लिए पेश किया गया था।
धनखड़ ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान इस प्रस्ताव पर नाराजगी जाहिर की और कहा, “मुझे और भी अधिक आश्चर्य इस बात का हुआ कि आप में से किसी ने इसे नहीं पढ़ा। अगर आपने इसे पढ़ा होता, तो आप कई दिनों तक सो नहीं पाते!”
कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव खारिज
यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा पेश किया गया था और इसे 60 विपक्षी सांसदों का समर्थन प्राप्त था। यह हाल ही में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्ष के बीच सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरोस से जुड़े विवाद के दौरान पेश किया गया था।
विपक्ष ने इस प्रस्ताव के जरिए संसद की कार्यवाही के संचालन को लेकर अपनी असहमति व्यक्त करने की कोशिश की। हालांकि, प्रस्ताव के खारिज होने से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच पहले से ही मौजूद खाई और गहरी हो गई है।
जगदीप धनखड़ का भावुक जवाब
राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने पद की गरिमा का बचाव करते हुए, श्री धनखड़ ने कांग्रेस पर अपने खिलाफ अभियान चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से पीड़ादायक है।
“मुझे व्यक्तिगत तौर पर दुख हुआ कि मुख्य विपक्षी दल अध्यक्ष के खिलाफ अभियान चला रहा है। उनके पास मेरे खिलाफ प्रस्ताव लाने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन वे संवैधानिक प्रावधानों से भटक रहे हैं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष संविधान की मर्यादा का उल्लंघन कर रहा है। “दिन-रात, अध्यक्ष के खिलाफ एक अभियान चल रहा है। मैंने सार्वजनिक डोमेन में हो रही घटनाओं का अध्ययन किया है, और यह बहुत परेशान करने वाला है,” उन्होंने कहा।
एक किसान का बेटा जो मजबूती से खड़ा है
अपने बयान में, श्री धनखड़ ने अपनी विनम्र पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि वह एक किसान के बेटे हैं और इस तरह के अभियानों से कमजोर नहीं पड़ेंगे।
“एक किसान के बेटे के रूप में, मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि मैं कमजोरी नहीं दिखाऊंगा,” उन्होंने कहा। यह बयान न केवल उनके साहस को प्रदर्शित करता है, बल्कि आम जनता के साथ उनकी जुड़ाव की भावना को भी प्रकट करता है।
राजनीतिक तनाव और बढ़ा
प्रस्ताव के खारिज होने से विपक्ष और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के बीच तनाव और बढ़ गया है। कांग्रेस नेताओं ने उपराष्ट्रपति पर पक्षपात का आरोप लगाया है, जबकि भाजपा ने विपक्ष को प्रक्रियात्मक खामियों का हवाला देते हुए लापरवाह बताया है।
उपसभापति हरिवंश ने भी प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि यह खराब तरीके से तैयार किया गया था और इसमें कोई ठोस आधार नहीं था। उनके अनुसार, प्रस्ताव में केवल एक चीज सही थी—वह थे 60 सांसदों के हस्ताक्षर।
संसदीय गरिमा पर उठे सवाल
इस विवाद ने संसदीय प्रक्रिया और दोनों पक्षों की जिम्मेदारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आलोचकों का कहना है कि विपक्ष की यह गलती उनकी तैयारी में कमी को दर्शाती है और उनकी साख को कमजोर करती है।
दूसरी ओर, विपक्ष का तर्क है कि प्रस्ताव को खारिज करना इस बात का संकेत है कि वर्तमान संसदीय ढांचे में असहमति के लिए जगह कम होती जा रही है।
आगे का रास्ता
अब, जब यह मामला समाप्त हो गया है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों पक्ष इस घटना के परिणामों को कैसे संभालते हैं। श्री धनखड़ के लिए, यह घटना उनकी निष्पक्षता और निष्कपटता को साबित करने का अवसर हो सकती है।
वहीं, विपक्ष के लिए यह प्रस्ताव एक चेतावनी है कि उन्हें प्रक्रियात्मक मानदंडों का पालन करना होगा, खासकर जब वे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हों।
निष्कर्ष
जगदीप धनखड़ के बयानों ने इस पहले से ही विवादास्पद मुद्दे में नाटकीयता जोड़ दी है। यह घटना न केवल राज्यसभा के सभापति की भूमिका, बल्कि विपक्ष की रणनीतियों पर भी बहस को जन्म देती है।
जैसा कि राज्यसभा इन चुनौतियों से निपटना जारी रखेगी, यह स्पष्ट है कि संसदीय कार्यवाही की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। आने वाले हफ्तों और महीनों में हमारे नेता इस स्थिति से कैसे निपटते हैं, यह देश के राजनीतिक भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।