मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है। राज्य में मई 2023 से जातीय संघर्ष चल रहा था। मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच इस हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए।
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के चार दिन बाद, केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया। राज्य विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया। इससे एक नया राजनीतिक अध्याय शुरू हो गया है।
राष्ट्रपति शासन क्यों लागू किया गया?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह फैसला संसद के बजट सत्र के बीच लिया। यह निर्णय मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला की रिपोर्ट के आधार पर हुआ।
इसके पहले, सुरक्षा एजेंसियों ने एक विस्तृत योजना बनाई। राज्य पुलिस और खुफिया एजेंसियां निगरानी कर रही थीं। उनका उद्देश्य था कि कोई अप्रिय घटना न हो।
राजनीतिक संकट और इस्तीफा
बीजेपी सरकार 9 फरवरी को गिर गई। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मुलाकात की थी।
राज्यपाल ने इस्तीफा स्वीकार किया। विधानसभा सत्र को “शून्य और अमान्य” घोषित कर दिया गया। कांग्रेस पहले ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रही थी।
विधानसभा में राजनीतिक समीकरण
मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं। हाल ही में एनपीपी विधायक एन. कैसी के निधन से यह संख्या 59 हो गई थी।
वर्तमान राजनीतिक स्थिति:
- बीजेपी के पास 37 विधायक हैं।
- एनपीपी के 6 विधायक हैं।
- एनपीएफ के 5 विधायक हैं।
- कांग्रेस के 5 विधायक हैं।
- कुकी पीपल्स एलायंस के 2 विधायक हैं।
- जेडीयू के 1 विधायक हैं।
- 3 निर्दलीय विधायक हैं।
हिंसा के बाद एनपीपी और कुकी पीपल्स एलायंस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। हालांकि, 2 एनपीपी विधायक अभी भी बीरेन सिंह के पक्ष में थे।
राष्ट्रपति शासन की घोषणा
गुरुवार को केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने अधिसूचना जारी की। इसमें कहा गया कि राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने के बाद यह फैसला किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार संविधान के अनुरूप कार्य करने में असमर्थ थी।
“संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, मैं (राष्ट्रपति) राज्य की समस्त प्रशासनिक शक्तियां ग्रहण करता हूं। राज्यपाल द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियां अब संसद के अधीन रहेंगी,” अधिसूचना में कहा गया।
आगे की रणनीति
बीजेपी के पूर्वोत्तर समन्वयक संबित पात्रा ने तीन दिनों तक बैठकें कीं। इसमें बीजेपी विधायकों और सहयोगी दलों के नेताओं से बातचीत हुई। मकसद था नए मुख्यमंत्री के लिए आम सहमति बनाना। लेकिन सहमति न बनने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
एक विधायक ने सुझाव दिया कि इस अवधि में सशस्त्र समूहों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन से कानून व्यवस्था में सुधार की उम्मीद है।
कांग्रेस का विरोध
कांग्रेस इस फैसले का विरोध कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष के. मेघचंद्र सिंह ने कहा, “बीरेन सिंह के नेतृत्व में मणिपुर पूरी तरह विफल हो गया था। जनता के जनादेश और संविधान का सम्मान नहीं किया गया।”
कुकी-जो समुदाय की प्रतिक्रिया
कुकी-जो समुदाय के संगठनों ने राष्ट्रपति शासन का स्वागत किया।
आईटीएलएफ के प्रवक्ता गिंजा वुअलजोंग ने कहा, “राष्ट्रपति शासन, मुख्यमंत्री बदलने से बेहतर है। इससे हिंसा समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ेंगे।”
निष्कर्ष
राष्ट्रपति शासन से मणिपुर की राजनीति में नया मोड़ आ सकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे क्या होता है। क्या यह फैसला राज्य में स्थिरता ला पाएगा? यह तो समय ही बताएगा।