Tuesday, January 28, 2025
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एनआईवी पुणे में पाए गए कैम्पिलोबैक्टर बैक्टीरिया के मरीज

पुणे के एनआईवी में कैंपिलोवैक्टर बैक्टीरिया के मरीज पाए गए हैं। यह बैक्टीरिया खाद्य जनित संक्रमण का सबसे आम जीवाणु कारक है। पुणे में बुलियन बैरे सिंड्रोम जीबीएसके सत्तर मामले सामने आए हैं। अचानक से इस बीमारी के इतने सारे मामले सामने आने पर महाराष्ट्र सरकार ने इस बीमारी की अचानक वृद्धि की जांच के लिए एक टीम बैठा दी है।

क्या है ( जीबीएस) गुलियन बैरे सिंड्रोम

यह एकऐसी स्थिति है जिसमें मरीज के शरीर के हिस्सें अचानक सुन्न होने लगते हैं और मांसपेशियों में कमजोरी की शिकायत होने लगती है। मरीज के शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं। मरीज को कमजोरी होती है। मरीज को दस्त होने लगते हैं। विपरीत परिस्थितियों में मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। जीबीएस एक प्रकार से जीवाणु वायरस का संक्रमण है जो कि मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है।

क्या कहना है गुलियन बैरे बीमारी की जांच के लिए बनाई गई टीम का

इस बीमारी की जांच के लिए बनाई टीम का कहना है कि 21 रोगियों के नमूनों में नोरोवायरस और कैंपिलोवेक्टर बैक्टीरिया उपस्थित पाए गए हैं। इन दोनों बैक्टीरिया के कारण रोगी को उल्टी, दस्त, जी मिचलाना की शिकायत होती है। पूणे के सभी मरीजों में ये लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इसी लिए राज्य सरकार ने रैपिड रिस्पांस टीम का गठन कर लिया है।

क्या कदम उठा रही है महाराष्ट्र सरकार जीबीएस की रोकथाम के लिए

महाराष्ट्र सरकार पूरे शहर और उप नगरीय क्षेत्र में जीबीएस के मामलों में वृद्धि होने पर एक (टीमरैपिड रिस्पांस ) टीम का गठन कर चुकी है। इस टीम का हिस्सा नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायोलॉजीऔर आईबी के वैज्ञानिक डॉ बाबासाहेब तांदले स्वास्थ्य सेवाओं के संयुक्त निदेशक डॉक्टर प्रेमचंद कांबले, बीजे मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ राजेश राज्य महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर भागचंद प्रधान है इसके अलावा कई विशेषज्ञ भी इस टीम का हिस्सा हैं। टीम का कहना है कि मरीज निगरानी में हैं उनकी लगातार जांच हो रही है और अब वह खतरे से बाहर हैं इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं है।

क्यों होती है जीबीएस बीमारी

यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण का पता अभी तक नहीं लग पाया है लेकिन जहां तक पता चला है अमेरिका मेंखाद्य जनित संक्रमण का सबसे आम जीवाणु कारक यही बैक्टीरिया है।  गुलियन बैरी सिंड्रोम से प्रतिक्रियाशील गठिया हो सकता है। इस बीमारी के कारण होने वाले मानव संक्रमणों का अनुपात समय के साथ बढ़ता जा रहा है। इस बीमारी के बैक्टीरिया उपचार के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैं। जिसके कारण इस बीमारी का उपचार करना बहुत मुश्किल हो रहा है। अधपके कच्चे मांस से यह बीमारी होती है मुख्य रूप से यह बीमारी मुर्गे से होती है। कच्ची मुर्गी को गलत तरीके से प्रिजर्वेटिव करके रखने, लंबे समय तक प्रिजर्वेटिव करना या फिर आपके कच्चे मांस को खाने से जीवाणु का खतरा बढ़ जाता है इसके उपाय के लिए हमें हर श्रृंखला में इस बीमारी को रोकने के प्रयास करनी चाहिए।

सबसे पहले इस बैक्टीरिया की पहचान कब हुई

1886 मे दस्त से पीड़ित बच्चों के मल के नमूने में कैंपिलो वायरस बैक्टीरिया दिखा

इस बैक्टीरिया से होने वाले नुकसान मुख्य रूप से रोगियों को दस्त बुखार और पेट में ऐंठन होती है। अगर यह रोग गंभीर हो जाता है इसके अलावा इस बैक्टीरिया से से गठिया और आंत रोग हो सकते हैं। रोगी को सबसे पहले पैरों में झनझनाहट महसूस होती है। बीमारी की शुरुआत के 10 दिनों के बाद मरीज के जोड़ प्रभावित होना शुरू हो जाते हैं और गठिया की शुरुआत हो सकती है। विषम परिस्थितियों में रोगी को पक्षाघात भी हो सकता है। रोगी को उगलने और निगलने में परेशानी हो सकती है। श्वसन तंत्र में कमजोरी आने के कारण पांच प्रतिशत लोगों की मृत्यु भी हो सकती है।

 इस संक्रमण से बचाव के उपाय क्या है

इस संक्रमण के रोगियों को इलेक्ट्रोलाइट देना चाहिए। गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को ग्लूकोज की ड्रिप चढ़ाकर तरल पदार्थ देना चाहिए जो रोगी थोड़े से स्वस्थ महसूस करें उन्हें लिक्विड डाइट और जूस पिलाना चाहिए।

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