IVF के लिए नए मानदंड: अब सिर्फ 20 से 35 वर्ष के पुरुष और महिलाएं ही अंडा व वीर्य दान के लिए होंगे योग्य

IVF नया नियम

नई दिल्ली – इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF) और सहायक प्रजनन तकनीक (ART) से जुड़ी नीतियों में बड़ा बदलाव प्रस्तावित किया गया है। नये प्रस्तावों के अनुसार, अब सिर्फ 20 से 35 वर्ष की आयु वाले पुरुष और महिलाएं ही अंडा (egg) या वीर्य (sperm) दान करने के लिए योग्य माने जाएंगे।

यह बदलाव IVF की सफलता दर बढ़ाने, दाताओं की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और आनुवंशिक जोखिमों को कम करने के उद्देश्य से लाया जा रहा है।

क्या है मौजूदा व्यवस्था?

भारत में IVF प्रक्रियाएं अब तक ART (Regulation) Act, 2021 और ICMR (Indian Council of Medical Research) के दिशानिर्देशों के तहत संचालित होती हैं:

  • महिला मरीजों की अधिकतम आयु: 50 वर्ष

  • पुरुष मरीजों की अधिकतम आयु: 55 वर्ष

  • दानकर्ताओं (donors) के लिए आयु सीमा: 21 से 35 वर्ष के बीच

कुछ निजी IVF क्लीनिक इसमें और भी सख्ती बरतते हैं, जैसे कि अंडा दाताओं के लिए 23 से 30 वर्ष तक की आयु सीमा तय करना।

नए मापदंड क्यों लाए जा रहे हैं?

मुख्य उद्देश्य हैं:

  1. गुणवत्ता और सफलता दर में वृद्धि – युवा दाताओं से प्राप्त अंडे और शुक्राणु अधिक स्वस्थ होते हैं, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ती है।

  2. आनुवंशिक बीमारियों की रोकथाम – उम्रदराज दाताओं से आनुवंशिक विकारों की संभावना अधिक रहती है। नई सीमा इसे काफी हद तक कम करती है।

  3. दाताओं की निगरानी आसान – सीमित आयु वर्ग से दाताओं का चयन करना लॉजिस्टिक और मेडिकल लेवल पर अधिक नियंत्रण प्रदान करता है।

क्या हैं संभावित चुनौतियां?

दान प्रक्रिया पर असर डाल सकते हैं ये नए नियम:

  • दानकर्ताओं की संख्या घट सकती है – अधिक आयु वर्ग को बाहर करने से दाताओं की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

  • प्रक्रिया हो सकती है अधिक खर्चीली – कम उम्र के दाताओं की कमी होने पर IVF क्लीनिक को उन्हें ढूंढने और प्रक्रिया पूरी करने में अधिक लागत लग सकती है।

  • कुछ मामलों में लचीलापन चाहिए होता है – जैसे मेडिकल इमरजेंसी या विशेष परिस्थितियों में ज्यादा आयु के स्वस्थ व्यक्ति से दान लेना भी आवश्यक हो सकता है।

विशेषज्ञों की राय

गुड़गांव स्थित एक IVF विशेषज्ञ कहते हैं:

“20 से 35 वर्ष की आयु सीमा एक वैज्ञानिक रूप से सही दिशा है। इससे गर्भधारण की सफलता दर बढ़ेगी और दंपत्तियों को सुरक्षित मातृत्व का मौका मिलेगा।”

हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि नियमों को थोड़ी लचीलापन के साथ लागू करना चाहिए, जिससे अनावश्यक असुविधा से बचा जा सके।

निष्कर्ष

यदि IVF में 20 से 35 वर्ष की आयु सीमा को दान के लिए अनिवार्य बना दिया जाता है, तो यह प्रजनन की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सुरक्षा और सफलता दरों के लिहाज़ से एक सकारात्मक कदम होगा।

हालांकि, नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बदलाव से जरूरतमंद दंपत्तियों को IVF सेवाएं सुगमता से मिलती रहें, और दानकर्ता आपूर्ति पर कोई गंभीर असर न पड़े।

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