आक्रमण को विवाद में बदल दिया गया – एस. जयशंकर
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को पश्चिमी देशों की दोहरी नीति पर सवाल उठाए, यह दावा करते हुए कि कश्मीर पर हुआ आक्रमण मूल रूप से एक ‘घुसपैठ’ थी, लेकिन इसे ‘विवाद’ के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भी ‘मजबूत और निष्पक्ष’ बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कश्मीर पर पश्चिम की भूमिका पर उठाए सवाल
नई दिल्ली में आयोजित रायसीना संवाद 2025 के एक सत्र में बोलते हुए जयशंकर ने कहा, जब पश्चिमी देश अन्य देशों में हस्तक्षेप करते हैं, तो इसे ‘लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की रक्षा’ कहा जाता है, लेकिन जब अन्य देश पश्चिमी देशों में हस्तक्षेप करते हैं, तो इसे ‘दुष्प्रभावी’ करार दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, किसी भी क्षेत्र पर सबसे लंबी अवैध कब्जेदारी कश्मीर में भारत की भूमि पर की गई। जयशंकर ने कहा, हम सभी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत और वैश्विक नियमों की नींव है। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, किसी भी देश द्वारा किए गए सबसे लंबे समय तक अवैध कब्जे की बात करें, तो वह भारत के कश्मीर क्षेत्र में हुआ। हमने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया, लेकिन एक आक्रमण को विवाद बना दिया गया। हमलावर और पीड़ित को एक समान कर दिया गया। इस पूरे मामले में कौन-कौन से पक्ष दोषी थे? ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका? तो कृपया क्षमा करें, मुझे इस पूरे विषय पर गंभीर संदेह है।
संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता पर उठे सवाल
#WATCH | Raisina Dialogue 2025 | Delhi: At the ‘Thrones and Thorns: Defending the Integrity of Nations’ session, EAM Dr S Jaishankar says, “We all speak of sovereignty and territorial integrity. It’s a vital principle and a bedrock of global rules. After World War II, the… pic.twitter.com/1iygclSxqu
— ANI (@ANI) March 18, 2025
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता पर भी प्रश्न उठाए और कहा कि वैश्विक व्यवस्था में समान मानक होने चाहिए। उन्होंने कहा, अगर हमें एक निष्पक्ष और व्यवस्थित विश्व व्यवस्था चाहिए, तो उसमें संतुलन और समान नियम होने चाहिए। हमें एक मजबूत संयुक्त राष्ट्र की जरूरत है, लेकिन एक मजबूत संयुक्त राष्ट्र के लिए निष्पक्षता आवश्यक है।
तालिबान और पश्चिमी देशों के दोहरे रवैये पर कटाक्ष
जयशंकर ने तालिबान के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा, अफगानिस्तान को ही लें। एक समय, यही तालिबान जिसे दुनिया अलग-थलग मानती थी, उसे दोहा प्रक्रिया और ओस्लो वार्ता में जगह दी गई। उस समय, पश्चिमी देश इसे स्वीकार करने के लिए तैयार थे। लेकिन आज फिर से यही कहा जा रहा है कि तालिबान ठीक नहीं कर रहा है। अगर वे वास्तव में गलत कर रहे थे, तो ओस्लो और दोहा में किस पर चर्चा हुई थी? एक ब्रिटिश जनरल ने तालिबान को ‘गांव के लड़के जिनका अपना सम्मान कोड है’ बताया था। जब तक आपको उनके साथ व्यवहार करना था, तब तक वे सही थे, और जब अब उनकी नीति आपको रास नहीं आ रही है, तो वे गलत हो गए? यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है.
विश्व व्यवस्था में नए संतुलन की जरूरत
जयशंकर ने विश्व व्यवस्था की समीक्षा करने और नई वास्तविकताओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्व में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट होते हैं, तो उसे गलत कहा जाता है। लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसे तख्तापलट को स्वीकार किया जाता है। पिछले आठ दशकों की वैश्विक घटनाओं का निष्पक्ष आकलन करना आवश्यक है। अब समय आ गया है कि हम इस बदली हुई दुनिया के साथ नए संतुलन की ओर बढ़ें।”
रायसीना संवाद 2025 में जयशंकर का भाषण
रायसीना संवाद, जो 17 से 19 मार्च तक दिल्ली में आयोजित हुआ, भारत का प्रमुख भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक सम्मेलन है। इसे ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) और विदेश मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जाता है। इस वर्ष के सम्मेलन का विषय ‘राष्ट्रों की संप्रभुता की रक्षा’ था, जिसमें जयशंकर ने अपने विचार रखे।
जयशंकर का यह भाषण वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव और उसकी स्वतंत्र कूटनीतिक सोच को दर्शाता है। उनके स्पष्ट विचार और बेबाक अंदाज ने एक बार फिर भारत की कूटनीति में आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की झलक दिखाई।