Thursday, May 22, 2025
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सिंधु जल संधि पर विराम: क्या भारत पाकिस्तान का पानी पूरी तरह रोक सकता है?

भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाया ब्रेक: बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ

पुलवामा नरसंहार के बाद भारत ने ऐतिहासिक सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर अस्थायी विराम लगा दिया है। गौरतलब है कि पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र का लगभग 80% हिस्सा सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। वर्तमान में भारत के पास केवल सीमित मात्रा में जल संग्रहण करने की क्षमता है, जो पाकिस्तान को जाने वाले पानी को पूरी तरह रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में उरी हमले के बाद कहा था, “रक्त और जल एक साथ प्रवाहित नहीं हो सकते।” यह वाक्य भारत के इस संधि के प्रति आक्रोश को दर्शाता है, जिसे लंबे समय से एकपक्षीय उदारता माना जाता रहा है।

सिंधु जल संधि: ऐतिहासिक समझौता या रणनीतिक भूल?

1960 में कराची में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित इस संधि ने भारत को रावी, व्यास और सतलुज नदियों पर अधिकार दिया, जिनका कुल वार्षिक प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट है। वहीं पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब जैसी पश्चिमी नदियों पर नियंत्रण मिला, जिनका प्रवाह 135 मिलियन एकड़ फीट के आसपास है।

भारत को पश्चिमी नदियों के जल का सीमित उपयोग ही अनुमत था — वह भी केवल हाइड्रोपावर, नौवहन और मत्स्य पालन जैसे गैर-खपत गतिविधियों के लिए।

सिंधु जल संधि में असंतुलन: भारत को हुआ नुकसान

रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी के अनुसार, यह दुनिया का सबसे उदार जल बंटवारा समझौता है, जिसमें भारत को बेहद कम लाभ मिला है। भारत ने पूर्वी नदियों पर भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर जैसे बड़े बांध बनाकर अपने हिस्से के 95% जल का उपयोग सुनिश्चित किया, लेकिन पश्चिमी नदियों पर उसकी भंडारण क्षमता नगण्य रही।

संधि का निलंबन: क्या बदल जाएगा परिदृश्य?

भारत द्वारा सिंधु जल संधि का निलंबन कई परिवर्तन ला सकता है:

  • भारत अब पाकिस्तान को नई परियोजनाओं की सूचना देने का बाध्य नहीं रहेगा।

  • निरीक्षण दौरों को अस्वीकार कर सकता है।

  • जल प्रवाह से जुड़ी जानकारी साझा नहीं करेगा।

  • किशनगंगा परियोजना में जलाशय फ्लशिंग कर सकता है जिससे बांध की आयु बढ़ेगी।

फिलहाल भारत की पश्चिमी नदियों पर जल भंडारण क्षमता 1 मिलियन एकड़ फीट से भी कम है। इसलिए अभी तत्काल पाकिस्तान की जल आपूर्ति को रोक पाना संभव नहीं है।

पश्चिमी नदियों पर भारत के नए प्रोजेक्ट्स

भारत पहले से ही कई बड़े हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है:

  • पकल डुल (1000 मेगावाट) — चेनाब की सहायक नदी मारुसुदर पर।

  • रातले (850 मेगावाट) — चेनाब नदी पर।

  • किरू (624 मेगावाट) — चेनाब पर।

  • सावालकोट (1856 मेगावाट) — चेनाब बेसिन में।

साथ ही, किशनगंगा परियोजना का जलाशय झेलम की सहायक नदी पर 18.35 मिलियन घन मीटर जल संग्रहीत कर सकता है।

आगे की रणनीति: भारत का तीन चरणों वाला मास्टरप्लान

पाहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार ने एक तीन-स्तरीय योजना तैयार की है:

  1. कम अवधि में — वर्तमान बांधों की क्षमता बढ़ाना।

  2. मध्यम अवधि में — नए जलाशयों का निर्माण।

  3. दीर्घकालीन लक्ष्य — बड़े पैमाने पर भंडारण और जल मोड़ ढांचे का विकास।

जल शक्ति मंत्रालय ने भी पाकिस्तान को पत्र लिखकर संधि में संशोधन की पुरानी मांगों को दोहराया है, जिन्हें अब तक इस्लामाबाद ने ठुकरा दिया था।

क्या भारत सिंधु जल संधि से पूरी तरह बाहर निकल सकता है?

रणनीतिक विश्लेषक चेलानी के अनुसार, भारत के पास वियना संधि कानून 1969 के अनुच्छेद 60 के तहत संधि से बाहर निकलने का कानूनी विकल्प भी मौजूद है, यदि कोई पक्ष गंभीर उल्लंघन करता है।

भारत का ऊपरी रिपेरियन (ऊपरी प्रवाह वाला) देश होने के नाते प्राकृतिक रूप से पश्चिमी नदियों के जल पर अधिकार है। यदि भारत बारिश के मौसम में जल छोड़े और शुष्क मौसम में जल रोक ले, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था — जो 25% जीडीपी सिंधु प्रणाली पर निर्भर करती है — पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष: लंबा लेकिन निर्णायक रास्ता

सिंधु जल संधि का निलंबन भारत के लिए एक अवसर है — न केवल रणनीतिक बढ़त पाने का, बल्कि अपने जल और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का भी। हालांकि, बड़ी परियोजनाओं के निर्माण में अभी भी 5 से 10 साल तक का समय लग सकता है। फिर भी, यह स्पष्ट है कि भारत ने अब वह रास्ता चुना है, जो भविष्य में पाकिस्तान की जल निर्भरता को गहरे संकट में डाल सकता है।

ABHISHEK KUMAR ABHAY
ABHISHEK KUMAR ABHAY
I’m Abhishek Kumar Abhay, a dedicated writer specializing in entertainment, national news, and global issues, with a keen focus on international relations and economic trends. Through my in-depth articles, I provide readers with sharp insights and current developments, delivering clarity and perspective on today’s most pressing topics.
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