पहलगाम हमले के बाद भारत का ऐतिहासिक फैसला
पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले के बाद, भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित कर दिया है। पाकिस्तान के सतत सीमा पार आतंकवाद को आधार बनाते हुए, भारत ने अपने जल कूटनीति और पड़ोसी से संबंधों में एक बड़ा परिवर्तन कर दिया है।
अब नरेंद्र मोदी सरकार ने जल प्रवाह रोकने के लिए तीन स्तरीय रणनीति अपनाई है — तात्कालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक — जिसमें बांध निर्माण, जल मोड़ और डेटा रोकथाम जैसी पहल शामिल हैं।
संधि का महत्व और भारत की नई चेतावनी
24 अप्रैल 2025 को भारत ने पाकिस्तान को औपचारिक सूचना दी कि सिंधु जल संधि को ‘स्थगन’ में रखा जा रहा है। इसके साथ:
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दोनों देशों के बीच जल डेटा का आदान-प्रदान बंद।
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सिंधु आयुक्तों की बैठकें रद्द।
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किसी भी नए परियोजना के लिए अग्रिम सूचना देने की बाध्यता समाप्त।
जल संसाधन सचिव देबाशीष मुखर्जी ने पाकिस्तानी समकक्ष सैयद अली मुर्तजा को लिखे पत्र में दो टूक कहा:
“संधि को सच्चे मन से निभाना आवश्यक है, किंतु पाकिस्तान ने सीमा पार आतंकवाद से इस भावना को रौंद डाला है।”
सिंधु जल संधि: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी इस संधि के अंतर्गत:
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पूर्वी नदियाँ — रावी, सतलज और ब्यास — भारत को मिलीं।
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पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब — पाकिस्तान के हवाले रहीं।
इसके तहत पाकिस्तान को वार्षिक औसतन 135 मिलियन एकड़ फीट (MAF) जल प्राप्त होता रहा — सिंधु प्रणाली के कुल प्रवाह का लगभग 70%।
भारत का तीन-चरणीय एक्शन प्लान
प्रधानमंत्री आवास पर हुई उच्च स्तरीय बैठक में, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल उपस्थित थे, भारत की व्यापक कार्य योजना को अंतिम रूप दिया गया। पाटिल ने स्पष्ट घोषणा की:
“भारत से पाकिस्तान की ओर एक बूँद भी नहीं जाएगी।”
तात्कालिक कदम:
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जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान तेज।
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भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को 72 घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश।
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पाकिस्तानी वीज़ा (एलटीवी को छोड़कर) तत्काल रद्द।
मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजना:
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मौजूदा बांधों की डी-सिल्टिंग।
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नए जलाशयों का निर्माण।
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नदी प्रवाह का मोड़ना और जल भंडारण क्षमता में वृद्धि।
इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर में वे जलविद्युत परियोजनाएँ, जिन्हें अब तक पाकिस्तान के विरोध के कारण रोका गया था, अब तेज़ी से आगे बढ़ेंगी।
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की तैयारी
चूंकि IWT एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसमें विश्व बैंक गारंटर है, संभावित कानूनी चुनौतियों की भी आशंका जताई जा रही है। भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि:
“अगर पाकिस्तान विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र में मामला ले जाता है, तो भारत पूरी तैयारी के साथ जवाब देगा।”
जल प्रवाह से संबंधित हाइड्रोलॉजिकल डेटा का आदान-प्रदान भी अब रोक दिया गया है, जिससे पाकिस्तान के बाढ़ और सूखे प्रबंधन में गंभीर बाधा आ सकती है।
घरेलू जल उपयोगकर्ताओं को नहीं होगा नुकसान
नई रणनीति के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत के भीतर जल उपयोगकर्ताओं को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। साथ ही, भारत अब पूर्वी नदियों के तहत अपनी विद्युत उत्पादन क्षमता को भी पूरी तरह से विकसित करने की दिशा में अग्रसर हो चुका है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: सर्वसम्मति और समर्थन
पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने कहा:
“जम्मू-कश्मीर ने हमेशा माना है कि सिंधु जल संधि हमारे लिए अन्यायपूर्ण रही है।”
उन्होंने आगे कहा कि दीर्घकालिक प्रभाव देखने में समय लगेगा, लेकिन उन्होंने भारत सरकार के कदम का समर्थन किया।
भाजपा ने भी एक वीडियो जारी किया जिसमें पाकिस्तान के सिंचाई और कृषि क्षेत्र की सिंधु जल पर निर्भरता को उजागर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी का प्रसिद्ध कथन दोहराया गया:
“खून और पानी साथ नहीं बह सकते।”
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: तीव्र आक्रोश
इस निर्णय के बाद पाकिस्तान ने भारत को चेतावनी दी है कि जल आपूर्ति में कोई भी व्यवधान ‘युद्ध का कार्य’ माना जाएगा। इस कदम ने पाकिस्तान के लिए खाद्य सुरक्षा और जल आपूर्ति संकट गहरा कर दिया है, जहाँ 240 मिलियन से अधिक लोग सिंधु जल पर निर्भर हैं।
पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि को अब तक का सबसे स्थिर अंतरराष्ट्रीय जल समझौता माना था। लेकिन, अब यह छह दशकों की स्थिरता के बाद सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि जब शांति और सहयोग की भावना को लगातार तोड़ा गया हो, तो संधि को बनाए रखना संभव नहीं है।