एंटीबायोटिक लेने वाले बच्चों के पेट में एंटीबायोटिक ना लेने वाले बच्चों (कंट्रोल ग्रुप) की तुलना में फंगस माइक्रोबायोटा (fungus microbiota) ज्यादा मात्रा में और ज्यादा वैराइटी वाले होते हैं. इतना ही नहीं ये स्थिति एंटीबायोटिक से इलाज शुरू होने के 6 हफ्ते बाद तक बनी रहती है. हाल ही में हुई स्टडी में ये सामने आया है. फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ हेलिंस्की (University of Helsinki) के रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी में पाया है कि एंटीबायोटिक थेरेपी से गट बैक्टीरिया में जगह के लिए कॉम्पिटिशन कम हो जाता है, जिससे फंगस को बढ़ने का मौका मिल जाता है. यूनिवर्सिटी में पीएचडी की रिसर्च स्टूडेंट रेबेका वेंटिन-होल्मबर्ग (Rebecka Ventin-Holmberg) ने बताया कि हमारी स्टडी के नतीजे इसका इसके क्लीयर मैसेज देते हैं कि पेट में मौजूद बैक्टीरिया फंगल माइक्रोबायोटा को रेगुलेट करता है और उसे कंट्रोल रखता है. जब एंटीबायोटिक के कारण बैक्टीरिया बाधित होता है, तो फंगस खासकर कैंडिडा (candida) को खुद को फैलाने का मौका मिल जाता है.
बता दें कि बच्चों को आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं. इससे उनके गट माइक्रोबायोटा में बदलाव होता है, जो उनके विकास में काफी महत्व रखता है. ये बदलाव वयस्कों की तुलना में बच्चों में अधिक समय तक बना रहता है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘जर्नल ऑफ फंगी (Journal of Fungi)’ में प्रकाशित हुआ है.
क्या कहते हैं जानकार
हमारी स्टडी का एक नया निष्कर्ष ये भी है कि फंगल गट माइक्रोबायोटा (Fungal Gut Microbiota) – बैक्टीरियल माक्रोबायोटा के साथ मिलकर एंटीबायोटिक के साइडइफैक्ट बच्चों की हेल्थ पर लंबे समय तक डालते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि एंटीबायोटिक का विपरीत प्रभाव बैक्टीरिया और फंगस दोनों ही माइक्रोबायोटा पर पड़ता है. इसके साथ ही एंटीबायोटिक क्रॉनिक इंफ्लेशन डिजीज का खतरा भी बढ़ता है, जिसे इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) भी कहते हैं. इस तरह की परेशानियां गट माइक्रोबायोटा में असंतुलन के कारण लंबे समय तक बनी रहती है. भविष्य की स्टडी को आंत (गट) में सभी सूक्ष्म जीवों पर एक साथ ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि उनके इंटर-कनेक्शंस को बेहतर ढंग से समझा जा सके और पूरी तरह से माइक्रोबायोम का बेहतर ओवरव्यू प्राप्त किया जा सके.