हरिद्वार है उत्तराखंड के देव मंदिरों के दर्शन का एक मुख्य द्वार जहां से यात्री उत्तराखंड के चारों धामों के दर्शन करते हैं। हरिद्वार एक ऐसा नगर है जो भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों को प्रिय है तभी तो उसका नाम हरिद्वार है। उत्तराखंड के चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री भगवान शिव और भगवान विष्णु को ही समर्पित हैं। आईए आज बात करते हैं क्यों हरिद्वार प्रसिद्ध है भगवान शिव की भक्ति के लिए
हरिद्वार में है मां गंगा का अमृत कुंड
हरिद्वार में मां गंगा विराजती हैं ।कहा जाता है कि हरिद्वार में ही हर की पौड़ी में अमृत कुंड विराजमान है। जहां के जल से स्नान कर व्यक्ति के सभी रोग दोष दूर होते हैं वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
बिलकेश्वर महादेव का मंदिर
हरिद्वार में है बिल्केश्वर महादेव का मंदिर जहां मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए पूजा की थी। पहले यहां पर बिल्व वृक्षों के बड़े-बड़े जंगल हुआ करते थे। यहां पर सदियों पुराना एक गौरीकुंड है। कहते हैं मां पार्वती ने यहीं पर स्नान कर बेल के पत्तों को खाकर वर्षो तक तपस्या की थी। आज भी कहते हैं कि जिस कन्या की विवाह में विघ्न बढ़ाएं आती हैं, विलंब होता है वह वहां पर जाकर स्नान कर ले तो उसकी सभी बाधाएं दूर हो जाती है। एक वर्ष के भीतर उसका विवाह हो जाता है।
हरिद्वार में है सतीकुंड
भगवान शिव को उनके लिए भगवान नारद ने खोजा था। उनके पिता को भगवान शिव का भोले भंडारी स्वरूप पसंद नहीं था। उन्होंने भगवान शिव को अपने घर यज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया।
हर लड़की को अपने मायका पसंद होता है मां सती को भी अपना मायका बहुत पसंद था। जब उनके पिता ने महादेव को यज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया तो उन्होंने भगवान शंकर से खुद यज्ञ में शामिल होने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने उन्हें तो भेज दिया पर खुद नहीं गए। वहां जाकर जब उन्होंने सभी देवताओं के लिए यथा योग्य सिंहासन देखें और भगवान शिव के लिए कोई भी आसान न देखा तो अपने पति का पिता द्वारा अपमान किए जाने पर मां सती ने पर यज्ञ कुंड में कूद कर अग्नि आहुति दी थी। आज भी हरिद्वार में सतीकुंड है जहां पर आज भी अग्नि प्रज्जवलित होती रहती है।
दक्ष मंदिर
भगवान शिव देवों के देव है जब मां सती अग्नि कुंड में कूद गई तब उन्होंने तांडव मचाया और दक्ष को भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। भगवान शिव का क्रोध इतने पर भी शांत नहीं हुआ उन्होंने मां सती के शव को अपनी गोद में उठाया और वह तांडव करते ही रहे। देवता दानव पूरी पृथ्वी त्राहिमाम करने लगी। सभी ने भगवान शिव के क्रोध को शांत करने की प्रार्थनाएं की। भगवान विष्णु ने मां सती के शव को अपने चक्र से टुकड़ों टुकड़ों में बांट दिया और वह टुकड़े जहां भी गिरे वहां पर अंगों के अनुसार अलग-अलग देवी के तीर्थ स्थापित हो गए। सभी की प्रार्थना करने से नीलकंठ महादेव का क्रोध शांत हुआ और ईश्वर अपने शांत स्वरूप में आए। तब उन्होंने दक्ष के मस्तक पर एक बकरे का सर लगाया और उसी जगह पर आज विराजमान है दक्ष महादेव का मंदिर
हरिद्वार में है भगवान शिव का पारे वाला मंदिर
कनखल में ही दक्ष मंदिर के पास विराजमान है भगवान शिव का पारे का शिवलिंग। जहां पर भगवान शिव के पारे वाले शिवलिंग के चारों तरफ रुद्राक्ष के बड़े-बड़े पेड़ है।
हरिद्वार में है मां के ज्योति पीठ मंशा देवी मंदिर चंडी देवी मंदिर, माया देवी मंदिर, सुरेश्वरी देवी मंदिर
हरिद्वार में भगवान शिव के ही मंदिर नहीं है। हरिद्वार में है दुर्गे मां के शक्तिपीठ जहां मां अपने शक्तिपीठ रूप में विराजमान है। सभी मंदिर शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित है। सभी मंदिरों की अपनी महत्ता है। मां मंशा देवी, मंदिर मां चंडी देवी के लिए तो ट्रॉली सेवा उपलब्ध है जहां रोपवे के जरिए यात्री दर्शन कर सकते हैं।