ंदेवउठनी एकादशी, पूजा विधि और महत्व 

ंदेवउठनी एकादशी, पूजा विधि और महत्व 

देवउठनी एकादशी की पूजा विधि और महत्व के बारे में आईए जानते हैं इस आर्टिकल के द्वारा 

कब है देवउठनी एकादशी ?

देव उठनी एकादशी शनिवार 1 नवंबर को मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी चिर निद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु तीन महीने पहले देव शयनी एकादशी के दिन योग निद्रा में लीन हुए थे। भगवान विष्णु के बाद भगवान शंकर, गणेश जी, हमारे पूर्वजों व देवी मां दुर्गे ने आकर इस सृष्टि का कार्यभार संभाला था। देवी मां लक्ष्मी दीपावली के दिन पृथ्वी लोक में विराजमान हुई थी। और देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं। 

इस दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप में तुलसी मां से विवाह किया था

इसी दिन तुलसी विवाह भी संपन्न होता है। भगवान शालिग्राम ने इस दिन मां तुलसी से विवाह किया था। भगवान विष्णु का भोग बिना तुलसी के पूरा नहीं माना जाता है। इस दिन का शास्त्रों में विशेष महत्व है। देवउठनी एकादशी के दिन कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। जिस कन्या का विवाह का मुहूर्त ना निकल रहा हो उसका विवाह भी तुलसी विवाह के दिन किया जा सकता है। शालिग्राम और तुलसी मां का विवाह इस दिन संपन्न कराने वाले व्यक्ति को 100 कन्याओं की कन्यादान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस बार देवउठनी एकादशी पर बन रहे हैं कई शुभ योग 

इस बार देवउठनी एकादशी पर ध्रुव और रवि योग बन रहे हैं। कर्क राशि में गुरु के स्थापित होने के कारण इस दिन राजयोग भी बन रहा है। शुक्र के कन्या राशि में और राहु के साथ होने के कारण इस दिन नव पंचम राजयोग भी बन रहा है इस योग का आर्थिक उन्नति और प्रतिष्ठा और सम्मान में विशेष योगदान है। 

देवउठनी एकादशी का मुहूर्त 

देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 पर शुरू होगी। देवउठनी एकादशी का समापन 2 अक्टूबर को सुबह 7:31 पर होगा। देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर को ही रखा जाएगा क्योंकि 1 नवंबर को सुबह के समय एकादशी होगी इसलिए 1 नवंबर को ही एकादशी का व्रत रखा जाएगा और 2 नवंबर को इस व्रत का पारण किया जाएगा। एकादशी व्रत का पारण 2 नवंबर को 1:11 डिनर से 3:30 तक रहेगा। 

देव उठनी एकादशी का क्या है पूजा मुहूर्त?

देवउठनी एकादशी की पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त सबसे शुभ माना जा रहा है। यह मूहूर्त 11:42 से शुरू होगा दोपहर 12:27 पर होगा। गोधूलि बेला का मूहूर्त पूजा के लिए शुभ रहेगा। यह मूहूर्त शाम 5:36 से लेकर शाम 6:02 तक रहेगा। प्रदोष काल का मुहूर्त भी देवउठनी एकादशी के लिए शुभ रहेगा इसका समय 7:36 मिनट से 8. 20 तक रहेगा।

क्या करें   एकादशी के दिन ?

इस दिन सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। कार्तिक के माह में तुलसी पूजन का विशेष महत्व होता है। पूरे कार्तिक के महीने में श्रद्धालु तारों की छांव में स्नान कर तुलसी पूजन कर दिया जलाते हैं। आज के दिन शाम को तुलसी मां की विशेष पूजा होती है गन्नों का मंडप सजाया जाता है। तुलसा जी के साथ भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप को विराजित किया जाता है। नए-नए फल और अनाज के साथ तुलसी पूजन किया जाता है। तुलसी मां का नारी के रूप में श्रंगार कराया जाता है। तुलसी मां को नई साड़ी, चुनरी, बिंदी, चूड़ी पहनाई जाती है। सफेद और लाल गेरू से अल्पना बना कर घर को सजाया जाता है। भगवान विष्णु को नए फल, साग, शकरकंद अर्पित कर उठो देव जागो देव बोलकर जगाया जाता है। मां तुलसी की सामर्थ्य अनुसार 7 से लेकर 108 परिक्रमा कर सुहागन स्त्रियां सदा सुहागन रहने की प्रार्थना करती हैं।

क्या ना करें एकादशीके दिन 

एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता है। इस दिन तामसिक भोजन मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता।

 

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