जनवरी में दिल्ली ने लगातार चौथे महीने भारत के दूसरे सबसे प्रदूषित शहर का खिताब अपने नाम किया। राजधानी में PM2.5 का औसत स्तर 165 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) से कई गुना अधिक है।
दिल्ली की जहरीली हवा: आंकड़ों में भयंकर प्रदूषण
स्वच्छ ऊर्जा और वायु अनुसंधान केंद्र (CREA) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी के पूरे महीने में एक भी दिन ऐसा नहीं था जब दिल्ली की हवा सुरक्षित सीमा के भीतर रही हो।
- 23 दिन – बहुत खराब श्रेणी
- 3 दिन – गंभीर श्रेणी (PM2.5 >250 µg/m³)
- 3 दिन – खराब श्रेणी
- 2 दिन – मध्यम श्रेणी
- 0 दिन – सुरक्षित श्रेणी
ये आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि दिल्ली की हवा लगातार जानलेवा होती जा रही है और सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं दिख रहा।
देश में सबसे प्रदूषित शहर बना बर्नीहाट
दिल्ली भले ही दूसरे स्थान पर रही हो, लेकिन असम-मेघालय सीमा पर स्थित औद्योगिक नगर बर्नीहाट ने भारत के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। यहां PM2.5 का औसत स्तर 214 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो दिल्ली से भी अधिक खतरनाक था।
भारत के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में शामिल अन्य स्थानों में हाजीपुर, तालचर, पटना, चंडीगढ़, गुवाहाटी, बैरकपुर, मुजफ्फरपुर और हावड़ा प्रमुख रहे। बिहार इस सूची में सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा, जहां 21 शहरों की वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय सीमा से अधिक प्रदूषित पाई गई।
भारत में प्रदूषण संकट: 105 शहरों की हवा जहरीली
जनवरी में 240 भारतीय शहरों में से 105 शहरों ने PM2.5 NAAQS सीमा (60 µg/m³) का उल्लंघन किया।
- 71 शहरों की हवा मध्यम श्रेणी (61-90 µg/m³) में रही।
- 31 शहरों में प्रदूषण स्तर खराब (91-120 µg/m³) पाया गया।
- 3 शहरों में यह बेहद खराब (121-250 µg/m³) दर्ज किया गया।
भारत का सबसे स्वच्छ शहर कौन सा रहा?
जब एक तरफ देश के कई शहर प्रदूषण से जूझ रहे थे, वहीं मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल ने सबसे स्वच्छ हवा वाला शहर होने का गौरव प्राप्त किया। यहां PM2.5 का औसत स्तर मात्र 9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो कि बेहद सुरक्षित और स्वच्छ हवा को दर्शाता है।
वायु प्रदूषण: समाधान या सिर्फ बहस?
हर साल दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में प्रदूषण का स्तर गंभीर रूप लेता जा रहा है। सरकार की ओर से कई योजनाएं लागू की जाती हैं, लेकिन लॉन्ग-टर्म समाधान की कमी के कारण स्थिति जस की तस बनी हुई है। वाहनों से निकलता धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, औद्योगिक कचरा और पराली जलाने की समस्या – ये सब मिलकर वायु गुणवत्ता को और भी खराब कर रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली और अन्य प्रदूषित शहरों के लिए कोई ठोस रणनीति अपनाई जाएगी या फिर हम सिर्फ आंकड़ों की बहस तक ही सीमित रहेंगे?