व्यापार युद्ध ने पकड़ा और जोर, अमेरिका-चीन आमने-सामने
नई दिल्ली:
चीन और अमेरिका के बीच जारी व्यापार युद्ध एक और तीव्र चरण में पहुंच गया है। शुक्रवार को चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क को 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया। यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी आयात पर 145% शुल्क लगाने के बाद सामने आया, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी उथल-पुथल की संभावना बन गई है।
चीन की यह नई टैरिफ नीति शनिवार से प्रभावी होगी। इस निर्णय से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता और बढ़ सकती है।
ट्रंप की नीतियों पर चीन की तीखी प्रतिक्रिया
बीजिंग स्थित स्टेट काउंसिल टैरिफ कमीशन ने इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन बताया है। आयोग ने कहा,
“अमेरिका द्वारा अत्यधिक टैरिफ लगाना आर्थिक सिद्धांतों और सामान्य व्यापार तर्क की अवहेलना है।”
चीन ने स्पष्ट किया है कि अब अमेरिकी सामानों का आयात व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक नहीं रहा और वे आगे से ट्रंप के किसी भी शुल्क वृद्धि प्रस्ताव को नजरअंदाज करेंगे।
शी जिनपिंग की यूरोप को चेतावनी
शुक्रवार को बीजिंग में स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ के साथ बैठक में, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूरोपीय संघ से चीन के साथ खड़े होने की अपील की। उन्होंने कहा कि,
“चीन और यूरोप को मिलकर एकतरफा आर्थिक दादागिरी का विरोध करना चाहिए, जिससे वैश्विक न्याय और निष्पक्षता की रक्षा हो सके।”
सरकारी मीडिया शिन्हुआ के अनुसार, शी ने दोहराया कि “टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता”।
ट्रंप की शी जिनपिंग पर टिप्पणी
ट्रंप ने इस सप्ताह राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सराहना करते हुए उन्हें “बेहद चतुर और देशभक्त नेता” बताया। उन्होंने कहा,
“मैं जानता हूं कि शी क्या करना चाहते हैं। वे एक समझदार व्यक्ति हैं। मुझे यकीन है वे एक समझौते की दिशा में आगे बढ़ेंगे।”
ट्रंप ने उम्मीद जताई कि शी से जल्द वार्ता होगी जिससे व्यापार युद्ध की आग पर पानी डाला जा सके।
शुल्क युद्ध का ताजा अपडेट
दिनांक | अमेरिका की कार्रवाई | चीन की प्रतिक्रिया |
---|---|---|
बुधवार | चीनी वस्तुओं पर 104% शुल्क | शुल्क बढ़ाकर 84% किया |
शुक्रवार | शुल्क बढ़ाकर 145% किया | शुल्क बढ़ाकर 125% किया |
निष्कर्ष
अमेरिका और चीन के बीच जारी यह शुल्क युद्ध न केवल इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी अस्थिर बना रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह टकराव पूरे विश्व के आर्थिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है।