छठ पर्व का समापन उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ होता है। छठ पर्व का समापन छोड़ जाता है अपने साथ पूरे पर्व की यादें। पूरा एक साल जब लोग इंतजार करेंगे एक साथ जुड़कर खट्टी मीठी यादों को संजोने का, सब एक साथ मिलते हैं और फिर बिछड़ जाते हैं 1 साल बाद दोबारा मिलने के लिए तो चलिए आज छठ पर्व के समापन की ही बात करते हैं।
छठ पर्व का समापन,डूबते सूरज को अर्घ्य देना
छठ की शाम से करते हैं शुरुआत, छठ की शाम जब सब लोग किसी भी नदी के किनारे जाकर डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं। व्रत करने वाले महिला और पुरुष घाट पर जाकर घाट साफ कर घर से मिट्टी लेकर गंगा घाट पर एक गन्ना रखकर उस गन्ने को घर से ली गई मिट्टी पर स्थापित करते हैं। व्रती नारियल के ऊपर दिया रख हाथ में सूप लेकर डूबते सूरज को अर्घ्य देने के लिए पानी में खड़े होकर भगवान से प्रार्थना करते हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं गंगाजल लोटे में भरकर घर ले जाकर कोसी सजाती है ,कोसी भरती हैं।
कोसी कैसे सजाई और भरी जाती है और क्यों सजाई जाती है ?
कोसी हर छठ का व्रत करने वाला नहीं सजाता। कोसी जब आप कोई शुभ काम करते हैं, शुभ काम की शुरुआत करते हैं तभी भरते हैं या फिर कुछ लोग हर छठ पर कोसी भरने की मन्नत मानते हैं। या फिर बिना मन्नत मांगें ही और हर बार कुछ व्रती कोसी भरते हैं। कोसी छह दीयों की या बारह दियों की भरी जाती है। कोसी भरने के लिए पहले उस जगह को धोया जाता है। उसके बाद चौक पूरा जाता है जो कि हल्दी और आटे या चावल के आटे से पूरा जाता है। कोसी में चना, ठेकुआ फल . और पूड़ी डाली जाती है। कोसी के अंदर चना, ठेकुआ फल और पूड़ी डाली जाती है हर दीये के बाहर पूड़ी, फल और ठेकुए रखे जाते हैं। इस तरह से 6 दीयों के बाहर 4 पूड़ी २ ठेकुए और एक फल कुल मिलाकर 28 पूड़ी बारह ठेकुए और छह फल रखे जाते हैं ।
4 पूड़ी, ठेकुए और एक फल कोसी के ढक्कन के ऊपर रखा जाता है। फिर चारो तरफ दीयों से सजा कर बीच में कोसी रख मां का भजन किया जाता है। कुछ समय बाद कोसी उठा ली जाती है। सुबह के समय घाट पर दोबारा कोसी भरी जाती है।
सुबह के समय अर्घ्य देना
सुबह के समय व्रती स्नान कर पुनः जल में खड़े हो जाते हैं। जब सूर्योदय होता है तो कच्चे दूध और गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पंडितजी व्रती व्यक्ति को अर्घ्य देते हैं।तीन पांच या सात बार परिक्रमा करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है ।
व्रत का पारण करना
व्रत का पारण करने के लिये व्रती व्यक्ति सूर्य को अर्घ्य देने के बाद सबसे पहले गर्म पानी और अदरक और गुड़ खाता है। अदरक और गुड़ के खाने के बाद व्रती व्यक्ति कोसी मे चढ़ाया हुआ ठेऊआ और चना खाकर अपना व्रत तोड़ता है।सुहागन स्त्रियां अपने से बड़ी स्त्रियों के पैर छूकर उनका आर्शीवाद लेती है। बड़े और बुर्जुग व्यक्ति आर्शीवाद देते हैं। बड़ी बुर्जुग सुहागन स्त्रियां आर्शीवाद स्वरूप अपनी से छोटी महिलाओं को सिंदूर लगाती हैं। नवयुवती और महिलाएं भी अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं को सिंदूर लगाकर उनका आर्शीवाद लेती हैं।
घर घर प्रसाद बांटना
जिन महिलाओं के घर में किसी ने व्रत नहीं रखा होता है वो अपने अड़ोसी पड़ोसी के घरों में ठेकुआ बनवाने का काम करती हैं। छठ वाली सुबह घाट पर जाने से पहले ही ठेकुआ बनाकर टोकरी , सूप में रख लिया जाता है। घाट से आने के बाद महाप्रसाद हर घर में बाटा जाता है। जिन व्यक्तियों के घर में छठ का व्रत नहीं रखा जाता है। उनके घरों में छ्ठ का प्रसाद विशेष रूप से दिया जाता है ।