Monday, March 31, 2025
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तमिलनाडु बनाम केंद्र: भाषा विवाद और राजनीतिक कटाक्ष

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा तीन-भाषा नीति पर की गई आलोचना का करारा जवाब देते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे राजनीतिक व्यंग्य का सबसे काला रूप करार दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिलनाडु किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है, बल्कि थोपे जाने और भाषायी अधिनायकवाद के विरोध में है।

भाषा विवाद पर बढ़ता टकराव

केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) में तीन-भाषा फॉर्मूला को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। डीएमके सरकार ने इस नीति को हिंदी थोपने की कोशिश बताते हुए विरोध जताया है, जबकि बीजेपी इसे महज राजनीतिक मुद्दा बनाने का आरोप लगा रही है।

योगी आदित्यनाथ ने ANI को दिए एक साक्षात्कार में स्टालिन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह क्षेत्र और भाषा के आधार पर मतभेद पैदा कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपना वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए स्टालिन ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:

तमिलनाडु की दो-भाषा नीति और निष्पक्ष परिसीमन पर हमारा रुख अब पूरे देश में गूंज रहा है और बीजेपी इससे घबराई हुई है। और अब माननीय योगी आदित्यनाथ हमें नफरत पर लेक्चर देना चाहते हैं? यह विडंबना नहीं है – यह राजनीतिक ब्लैक कॉमेडी का सबसे गहरा रूप है।

परिसीमन पर तमिलनाडु का विरोध

भाषा विवाद के अलावा, एक और मुख्य टकराव का बिंदु है 2026 के बाद प्रस्तावित परिसीमन। डीएमके का तर्क है कि दक्षिणी राज्यों ने परिवार नियोजन को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे उनकी जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित रही है। यदि नए परिसीमन में केवल जनसंख्या को आधार बनाया जाता है, तो तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटें घट सकती हैं, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों की संख्या बढ़ सकती है।

स्टालिन ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि दक्षिणी राज्यों का देश की जीडीपी में बड़ा योगदान है, लेकिन परिसीमन के बाद उनकी संसद में हिस्सेदारी कम हो सकती है, जो असमानता और अन्याय को दर्शाएगा।

योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तमिलनाडु की हिंदी विरोधी नीति पर सवाल उठाते हुए कहा:

हर भारतीय को सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए। हमें भाषा या क्षेत्र के आधार पर देश को विभाजित नहीं करना चाहिए। तमिल भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है, और इसकी महत्ता संस्कृत के समान है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने काशी-तमिल संगमम का आयोजन कर तीसरी पीढ़ी को इस सांस्कृतिक विरासत से जोड़ा है। फिर हिंदी से नफरत क्यों?

उन्होंने डीएमके की राजनीति को संकीर्ण मानसिकता बताते हुए कहा कि जब कुछ राजनीतिक दलों को अपना वोट बैंक खतरे में नजर आता है, तो वे भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर मतभेद बढ़ाने की कोशिश करते हैं।

तमिलनाडु की लड़ाई – भाषा विरोध नहीं, थोपे जाने का विरोध

स्टालिन ने अपने पोस्ट में स्पष्ट किया कि तमिलनाडु किसी भी भाषा का विरोध नहीं करता, बल्कि थोपने की प्रवृत्ति और भाषायी दंभ के खिलाफ खड़ा है।

उन्होंने लिखा:

यह वोटों के लिए दंगे भड़काने की राजनीति नहीं है। यह गरिमा और न्याय की लड़ाई है। हम नफरत नहीं फैलाते, बल्कि भाषाई स्वतंत्रता और समानता के लिए खड़े हैं।

निष्कर्ष

भाषा विवाद और परिसीमन को लेकर दक्षिण और उत्तर भारत के बीच राजनीतिक तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। जहां डीएमके इसे संवैधानिक समानता और पहचान की लड़ाई बता रही है, वहीं बीजेपी इसे राजनीतिक हथकंडा करार दे रही है। इस मुद्दे पर आगे क्या मोड़ आएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

ABHISHEK KUMAR ABHAY
ABHISHEK KUMAR ABHAY
I’m Abhishek Kumar Abhay, a dedicated writer specializing in entertainment, national news, and global issues, with a keen focus on international relations and economic trends. Through my in-depth articles, I provide readers with sharp insights and current developments, delivering clarity and perspective on today’s most pressing topics.
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