सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 प्रमुख विधेयकों को राष्ट्रपति के पास आरक्षित भेजने का निर्णय असंवैधानिक और मनमाना है। यह निर्णय मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है।
राज्यपाल की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपाल को जब विधानसभा से पुनः पारित होकर विधेयक दोबारा प्रस्तुत किया गया था, तब उन्हें उन पर सहमति देनी चाहिए थी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई विधेयक दोबारा विधानसभा द्वारा पारित होकर राज्यपाल को भेजा जाए, तो वह उस पर असहमति नहीं जता सकते।
संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के विकल्प
अनुच्छेद 200 के तहत, राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते हैं:
- विधेयक को मंजूरी देना,
- असहमति जताना,
- राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना।
हालांकि, अगर विधेयक दोबारा विधानसभा से पारित होकर राज्यपाल को भेजा जाए, तो उन्हें मंजूरी देना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई विधेयक संविधान, नीति निदेशक सिद्धांतों या राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा हो, तभी उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है और वह भी मंत्रिपरिषद की सलाह से।
समयसीमा का निर्धारण और न्यायिक समीक्षा
अदालत ने इस प्रक्रिया के लिए स्पष्ट समयसीमा तय की:
- विधेयक पर असहमति या राष्ट्रपति को भेजने का निर्णय एक माह के भीतर लिया जाए।
- यदि बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के राष्ट्रपति को भेजा गया हो, तो यह समय तीन माह होगा।
- पुनर्प्रस्तुत विधेयकों पर राज्यपाल को एक माह के भीतर निर्णय लेना होगा।
यदि राज्यपाल समयसीमा का पालन नहीं करते, तो उनकी कार्रवाई न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी।
संवैधानिक गरिमा और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर बल
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल की शक्तियों को कमतर नहीं कर रही है, लेकिन हर कार्यवाही संसदीय लोकतंत्र की भावना के अनुरूप होनी चाहिए।
राज्यपाल आरएन रवि और डीएमके सरकार के बीच तनाव
पूर्व आईपीएस अधिकारी और सीबीआई के पूर्व सदस्य रहे आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पदभार संभाला था। उनके कार्यकाल की शुरुआत से ही डीएमके सरकार के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।
राज्य सरकार ने उन पर भाजपा के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करने और विधेयकों व नियुक्तियों में बाधा डालने का आरोप लगाया है। वहीं, राज्यपाल का कहना है कि संविधान उन्हें विधेयकों पर सहमति न देने का अधिकार देता है।
विधानसभा संबोधन को लेकर विवाद
2023 में राज्यपाल रवि ने विधानसभा के पारंपरिक भाषण को देने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि भाषण में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं। इससे पहले, उन्होंने ‘द्रविड़ मॉडल’, बीआर आंबेडकर, पेरियार, सीएन अन्नादुरई और तमिलनाडु की कानून-व्यवस्था पर दिए गए उद्धरणों को पढ़ने से मना कर दिया था।
निष्कर्ष
यह निर्णय न केवल तमिलनाडु सरकार के लिए एक राहत है, बल्कि यह भविष्य में अन्य राज्यों में भी राज्यपालों की संवैधानिक सीमाओं को स्पष्ट करता है। अदालत के इस निर्णय से यह संदेश गया है कि राज्यपालों की शक्ति संविधान और लोकतंत्र की भावना से परे नहीं हो सकती।