भारत में इतिहास हमेशा से राजनीतिक और सांप्रदायिक बहस का केंद्र रहा है। इसी कड़ी में 17वीं सदी के मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब की कब्र एक नए विवाद का कारण बन गई है। महाराष्ट्र के नागपुर में हिंदू-मुस्लिम हिंसा भड़क उठी है, जहां हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा उनकी कब्र को ध्वस्त करने की माँग ने तनाव बढ़ा दिया है।
नागपुर में क्यों भड़की हिंसा?
पिछले हफ्ते, महाराष्ट्र के एक भाजपा सांसद ने औरंगज़ेब की कब्र की खुदाई करने की माँग की थी। इसके बाद, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के करीब 100 कार्यकर्ताओं ने नागपुर में विरोध प्रदर्शन किया, यह कहते हुए कि औरंगज़ेब ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया और उनके धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस की मौजूदगी में औरंगज़ेब के पुतले को हरे कपड़े में लपेटकर जलाया गया।
हालांकि, स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने इस प्रदर्शन का विरोध किया, खासतौर पर रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान। अफवाहें फैलीं कि जलाए गए कपड़े पर कुरान की आयतें लिखी थीं, जिससे मुस्लिम समुदाय में रोष बढ़ा। इसके बाद, शाम की नमाज के बाद मुस्लिम समुदाय ने पुलिस से शिकायत दर्ज करने की माँग की।
स्थिति जल्द ही हिंसक हो गई, जिससे हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए। प्रशासन ने कर्फ्यू लागू कर दिया, और अब तक 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं।
कौन थे औरंगज़ेब?
औरंगज़ेब भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे। उनकी कब्र नागपुर में नहीं, बल्कि 450 किलोमीटर दूर छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) में स्थित है।
उनकी नीतियाँ उनके परदादा अकबर से प्रभावित थीं। इतिहासकार ऑड्रे ट्रस्के के अनुसार, औरंगज़ेब ने मराठा और राजपूतों समेत विभिन्न समुदायों के लोगों को अपने प्रशासन में महत्वपूर्ण पद दिए थे। हालाँकि, उन्होंने कठोर इस्लामी कानून भी लागू किए और हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया।
हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के अनुसार, औरंगज़ेब ने कई मंदिरों को नष्ट किया, लेकिन इतिहासकार यह भी बताते हैं कि उन्होंने कई हिंदू धार्मिक स्थलों को अनुदान भी दिया। दरअसल, उनके शासन का मुख्य उद्देश्य धार्मिक कट्टरता नहीं, बल्कि सत्ता को बनाए रखना था।
आज के भारत में औरंगज़ेब का विवाद क्यों?
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान औरंगज़ेब को एक क्रूर शासक के रूप में चित्रित किया गया। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े संगठनों ने इसी कथा को आगे बढ़ाया है।
वर्तमान में, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी इसी प्रकार का विवाद है। हिंदू समूहों का दावा है कि यह मस्जिद 1669 में औरंगज़ेब द्वारा ध्वस्त किए गए काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार औरंगज़ेब को अत्याचारी शासक के रूप में संबोधित कर चुके हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि किसी भी प्राचीन शासक को आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर आंकना गलत है। फिर भी, भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए औरंगज़ेब सिर्फ एक ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन चुके हैं।
निष्कर्ष
नागपुर में जारी हिंसा और औरंगज़ेब की कब्र को लेकर उठे विवाद से यह स्पष्ट होता है कि इतिहास भारत की राजनीति में कितना प्रभावशाली है। क्या यह विवाद केवल एक ऐतिहासिक बहस है, या इसके पीछे एक व्यापक सांप्रदायिक राजनीति है? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। भारत को इतिहास से सीखकर आगे बढ़ना होगा, न कि उसे एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।