भारतीय रुपये की गिरती कीमत ने देश की अर्थव्यवस्था में चिंता पैदा कर दी है। 10 जनवरी 2025 को, रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 86 तक पहुंच गई। इस गिरावट के पीछे कई कारण छिपे हैं:
रुपये की गिरावट के कारण
- विदेशी निवेशकों की निकासी:
विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी बाहर ले जाने से रुपये की मांग में कमी आई है। - कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें:
तेल आयात के लिए डॉलर की मांग बढ़ी है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ गया। - नकारात्मक घरेलू शेयर बाजार भावना:
भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों का विश्वास कमजोर हुआ है। - अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और व्यापार प्रतिबंध की आशंका:
आगामी अमेरिकी नीतियों के प्रति अनिश्चितता ने डॉलर की मांग को बढ़ाया है। - निर्यात में गिरावट:
कम निर्यात से रुपये की मांग कम हुई है, जिससे आर्थिक वृद्धि प्रभावित हुई है।
आरबीआई की मुद्रा स्थिरीकरण रणनीति
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर रहा है। बाजार में अधिक डॉलर छोड़कर, RBI रुपये की मांग को स्थिर बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, इस प्रक्रिया में देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी घटा है।
रुपये की गिरावट का प्रभाव: कौन लाभ में और कौन घाटे में?
लाभ में कौन?
- अमेरिका और अन्य निर्यातक देश:
रुपये की कमजोरी के चलते भारत को सामान बेचने वाले देशों को अधिक लाभ होता है क्योंकि अधिकतर अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। - अमेरिका में काम करने वाले भारतीय:
डॉलर को रुपये में बदलने पर उन्हें ज्यादा मूल्य प्राप्त होता है।
घाटे में कौन?
- भारतीय उपभोक्ता:
रुपये की कमजोरी से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। तेल और सोने जैसे प्रमुख आयात महंगे होने से महंगाई बढ़ती है। - विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्र:
खासतौर पर अमेरिका में पढ़ाई करने वाले छात्र ज्यादा प्रभावित होते हैं। डॉलर में ट्यूशन फीस चुकाने के लिए अब उन्हें ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
निष्कर्ष
रुपये की कमजोरी केवल आर्थिक आंकड़ों पर ही नहीं बल्कि आम जनता की जेब पर भी भारी पड़ती है। तेल, सोना और शिक्षा जैसे क्षेत्रों पर इसका सीधा असर देखने को मिलता है। ऐसे में, स्थिरता लाने के लिए सरकार और RBI को मिलकर काम करना होगा ताकि रुपये की गिरावट को रोका जा सके और आर्थिक अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सके।