प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती के अवसर पर एक लेख लिखा, जिसमें उनके योगदान को याद किया गया। मोदी ने वाजपेयी को “21वीं सदी में भारत के परिवर्तन के वास्तुकार” बताते हुए उनकी नेतृत्व क्षमता को सलाम किया, जिसने देश की आर्थिक और तकनीकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रधानमंत्री मोदी का यह लेख प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने वाजपेयी की विरासत को सम्मानित करते हुए उन्हें ऐसा राजनेता बताया, जिन्होंने लाखों लोगों को प्रेरित किया। मोदी ने कहा कि वाजपेयी ने अपने संसदीय कार्यकाल का एक बड़ा हिस्सा विपक्ष में बिताया, लेकिन कभी भी कड़वाहट को अपने काम में हावी नहीं होने दिया, भले ही कांग्रेस ने उन्हें “गद्दार” तक कहने की हदें पार कर दीं।
विचारधारा और सत्ता के बीच हमेशा विचारधारा चुनी
मोदी ने वाजपेयी की इस अनूठी विशेषता को रेखांकित किया कि उन्होंने हमेशा विचारधारा को सत्ता से ऊपर रखा। उन्होंने याद किया कि कैसे वाजपेयी ने कठिन राजनीतिक परिस्थितियों में भी अपनी सिद्धांतप्रियता को बनाए रखा। मोदी ने लिखा, “जब भी विचारधारा और सत्ता के बीच चयन करना पड़ा, अटल जी ने हमेशा विचारधारा को प्राथमिकता दी।”
प्रधानमंत्री मोदी ने नागरिकों से अपील की कि वे वाजपेयी के आदर्शों को अपनाने और उनके सपनों को साकार करने के लिए खुद को पुनः समर्पित करें। अपने लेख में उन्होंने वाजपेयी के साथ बिताए क्षणों को याद किया और इसे अपने जीवन का सौभाग्य बताया।
नेतृत्व का उदाहरण: पोखरण परमाणु परीक्षण
1998 की गर्मियों में पोखरण परमाणु परीक्षणों को वाजपेयी के नेतृत्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण बताते हुए मोदी ने कहा कि यह समय देश की आत्मनिर्भरता और साहस का प्रतीक था।
11 मई को भारत ने अपनी परमाणु क्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे पूरी दुनिया चौंक गई। अंतरराष्ट्रीय विरोध और प्रतिबंधों के बावजूद, वाजपेयी ने साहस और दृढ़ संकल्प दिखाया।
“कोई सामान्य नेता ऐसे दबाव में झुक सकता था, लेकिन अटल जी अलग मिट्टी के बने थे। दो दिन बाद, 13 मई को, उन्होंने एक और परीक्षण करने का साहसिक निर्णय लिया,” मोदी ने लिखा।
उन्होंने कहा कि यह कदम विश्व को यह संदेश देने के लिए था कि भारत अब किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
सिद्धांतों के प्रति अडिग राजनेता
मोदी ने वाजपेयी की राजनीति में नैतिकता को उजागर करते हुए उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया। 1996 में, वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना उचित समझा, बजाय इसके कि वे सत्ता में बने रहने के लिए अनैतिक सौदेबाजी करें।
इसी तरह, 1999 में जब उनकी सरकार मात्र एक वोट से गिर गई, तो वाजपेयी ने संविधान का पालन किया और सत्ता में बने रहने के लिए कोई अनुचित कदम नहीं उठाया।
“अटल जी के नेतृत्व ने यह दिखाया कि सिद्धांतों के लिए खड़ा होना ही सच्चा नेतृत्व है,” मोदी ने कहा।
संविधान की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध
प्रधानमंत्री मोदी ने वाजपेयी की संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को भी याद किया। उन्होंने लिखा कि वाजपेयी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान से गहरे प्रभावित थे और आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में एक स्तंभ की तरह खड़े रहे।
“1977 के चुनाव से पहले आपातकाल के दौरान, उन्होंने अपनी पार्टी जनसंघ का जनता पार्टी में विलय करने का निर्णय लिया। यह निर्णय उनके लिए और उनके साथियों के लिए कष्टदायक रहा होगा, लेकिन उनके लिए संविधान की रक्षा ही सबसे महत्वपूर्ण थी,” मोदी ने लिखा।
आधुनिक भारत के निर्माता
वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यकाल को भारत के तकनीकी और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में परिवर्तनकारी युग बताते हुए मोदी ने उनकी कई पहलों की प्रशंसा की।
उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का उल्लेख किया, जिसने भारत को जोड़ने का काम किया। ग्रामीण सड़कों को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और दिल्ली मेट्रो जैसी विश्वस्तरीय परियोजनाओं को भी उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण बताया।
अमर विरासत
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लेख का समापन करते हुए लिखा कि वाजपेयी केवल अपने समय के नेता नहीं थे, बल्कि हर समय के लिए प्रासंगिक नेता थे।
“अटल जी का जीवन और उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि एक सशक्त, समृद्ध और समावेशी भारत के निर्माण के लिए हमें उनके आदर्शों पर चलना होगा,” उन्होंने कहा।
अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर पूरा देश उनकी अमूल्य विरासत को नमन करता है। उनका नेतृत्व और उनके आदर्श हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।