Tuesday, December 3, 2024
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Kanguva Review: तमिल बाहुबली और केजीएफ बनने का इसका इरादा अभी भी अधूरा है

कंगुवा एक ऐसी फिल्म है जो बहुत बड़ी और शानदार दिखाई देती है। इस फिल्म में सुरिया की एक्टिंग और उनकी उपस्थिति सबसे खास हैं। फिल्म में हवा, पानी और आग जैसी प्राकृतिक शक्तियों को दिखाने की कोशिश की गई है, और कहानी को दो अलग-अलग समय के बीच जोड़ने का प्रयास किया गया है। लेकिन, फिल्म में ये सभी विचार अच्छे थे, लेकिन इनको सही तरीके से जोड़ा नहीं गया, और इसलिए कहानी में कमी दिखी। अब हम जानेंगे कि कंगुवा फिल्म में क्या अच्छा था और क्या नहीं।

कंगुवा की कहानी:

कंगुवा एक ऐसी फिल्म है जिसमें सुरिया का किरदार बहुत मजबूत और शक्तिशाली है। वह एक ऐसा योद्धा है जो किसी भी खतरे का सामना कर सकता है। फिल्म में एक तरफ आज का समय दिखाया गया है और दूसरी तरफ पुराना समय, जो लगभग 1070 ईस्वी के आसपास का है। फिल्म में हवा, पानी और आग की शक्तियों को भी दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन इस सबको सही तरीके से एक साथ नहीं जोड़ा गया। इससे कहानी में उलझन और थोड़ी सी असमंजसता महसूस होती है।

सुरिया की एक्टिंग:

सुरिया ने कंगुवा के किरदार को बहुत अच्छे से निभाया है। उनकी एक्टिंग इतनी मजबूत है कि वह स्क्रीन पर सबसे ज्यादा दिखाई देते हैं। कंगुवा एक ऐसा योद्धा है जो बिना डरे और बिना रुके अपने रास्ते पर आगे बढ़ता है। सुरिया की यह भूमिका बहुत इम्प्रेसिव है। हालांकि, फिल्म की कहानी में सुरिया का किरदार पूरी तरह से उभर कर नहीं आता। फिल्म का लेखन इतना अच्छा नहीं है कि कंगुवा के किरदार को पूरी तरह से समझा जा सके।

फिल्म का पहला हिस्सा:

फिल्म के पहले 30 मिनट थोड़े कमजोर और उबाऊ हैं। यहां फिल्म की शुरुआत में तीन मुख्य पात्रों के बारे में बताया जाता है जो पुलिस की मदद करते हैं। इन पात्रों में से एक पात्र गोवा में मर जाता है, और इससे कंगुवा (सुरिया) और उनका साथी कोल्ट 95 (योगी बाबू) छिपने के लिए भाग जाते हैं। इस हिस्से में कोई ठोस कहानी नहीं है और कुछ भी समझ में नहीं आता। सभी पात्र आपस में चिल्लाते हुए बात करते हैं, लेकिन इससे कहानी में कोई मदद नहीं मिलती।

पात्रों का विकास:

फिल्म में सुरिया के अलावा अन्य पात्रों का कोई खास विकास नहीं होता। एंजेला (दिशा पटानी) कंगुवा की प्रेमिका से दुश्मन बन जाती है, लेकिन उसका किरदार बिल्कुल खाली सा लगता है। वही कोल्ट 95, जो फिल्म में हास्य का तत्व लाने की कोशिश करता है, वह भी कुछ खास नहीं कर पाता। दोनों ही पात्रों के होने से फिल्म में कोई खास फर्क नहीं पड़ता।

कंगुवा का यथार्थ और पुराना समय:

फिल्म में जब कहानी 1070 ईस्वी के पुराने समय में जाती है, तब चीजें थोड़ी बेहतर होती हैं। यहां कंगुवा और उसके लोग अपने द्वीप को बचाने के लिए युद्ध करते हैं। कंगुवा, जो पेरुमाची द्वीप का राजकुमार और मुख्य योद्धा है, अपने लोगों को 25,000 रोम के सैनिकों से बचाने के लिए लड़ा है। यह हिस्सा बहुत रोमांचक और इंटरेस्टिंग है। कंगुवा का चरित्र और उसकी लड़ाई बहुत दिलचस्प तरीके से दिखाए गए हैं। वह अपने लोगों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

कंगुवा की ताकत:

कंगुवा की ताकत इतनी अद्भुत है कि वह अकेला ही एक पूरी सेना से लड़ सकता है। उसका आत्मविश्वास और उसका साहस इसे एक शक्तिशाली पात्र बनाते हैं। वह अपनी मानसिकता को दिखाने के लिए कई उदाहरण देता है, जैसे कि वह पेड़ की तरह अडिग है और पानी की तरह आगे बढ़ता है। हालांकि, इन सब चीजों को और अच्छे तरीके से दिखाया जा सकता था। फिल्म में कंगुवा की ताकत को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है, लेकिन उसे और गहराई से पेश किया जा सकता था।

फिल्म का संगीत और ध्वनि:

फिल्म का संगीत बहुत जोर से और ध्यान भटकाने वाला है। कभी-कभी यह फिल्म की कहानी को नहीं बढ़ाता, बल्कि सिर्फ अव्यवस्थित लगता है। संगीत का इस्तेमाल कंगुवा के किरदार को और ताकतवर दिखाने के लिए किया गया है, लेकिन कभी-कभी यह बहुत ज्यादा हो जाता है। फिल्म की ध्वनि और ध्वनि डिजाइन भी उतनी प्रभावशाली नहीं हैं। यह तत्व फिल्म की कहानी के लिए बेहतर हो सकते थे, लेकिन यहां यह अक्सर निराश करते हैं।

कंगुवा का अद्वितीय पहलू:

फिल्म का एक अच्छा पहलू यह था कि कंगुवा का किरदार कभी-कभी कमजोर और मुलायम दिखाया गया था। एक समय पर वह एक अनाथ बच्चे की देखभाल करता है, जो एक गहरे पहलू को दर्शाता है। वह अपनी मां के बिना बच्चे की मदद करता है और उसके लिए एक पिता की तरह होता है। इस सीन में कंगुवा का किरदार बहुत ही अलग और खास दिखाई देता है। लेकिन, दुर्भाग्यवश यह पहलू फिल्म की दूसरी सामान्य चीजों में खो जाता है।

कंगुवा की ताकत और कमजोरियां:

कंगुवा फिल्म अपनी दृश्य सुंदरता और शानदार एक्टिंग के बावजूद पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई। फिल्म की कहानी बहुत खिचड़ी और असंगत थी। जो महत्वपूर्ण पहलू थे, जैसे कि कंगुवा का आदर्श, उनका नरम पक्ष और समय की दोहरी धारा, वे सही तरीके से फिल्म में पेश नहीं किए गए। फिल्म का पुराना समय बहुत अच्छा था, लेकिन वर्तमान समय के भाग बहुत अधिक हड़बड़ी में थे।

निष्कर्ष:

कंगुवा एक ऐसी फिल्म है जिसमें शानदार दृश्य और एक प्रभावशाली अभिनेता है, लेकिन कहानी में बहुत सी कमियां हैं। फिल्म के पहले हिस्से को और बेहतर किया जा सकता था, और पात्रों का अधिक विकास किया जा सकता था। जबकि फिल्म का इतिहास बहुत अच्छा था, वर्तमान समय का हिस्सा कमजोर था। यदि फिल्म में थोड़ा अधिक ध्यान दिया जाता और इसके विचारों को बेहतर तरीके से जोड़ा जाता, तो कंगुवा एक शानदार फिल्म बन सकती थी।

ABHISHEK KUMAR ABHAY
ABHISHEK KUMAR ABHAY
I’m Abhishek Kumar Abhay, a dedicated writer specializing in entertainment, national news, and global issues, with a keen focus on international relations and economic trends. Through my in-depth articles, I provide readers with sharp insights and current developments, delivering clarity and perspective on today’s most pressing topics.
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