Hungary vs Portugal: भारतीय राजनीति और उपराष्ट्रपति चुनाव से सीख

Hungary vs Portugal

Hungary vs Portugal: भारत की राजनीति में इस समय उपराष्ट्रपति चुनाव ने एक नई चर्चा को जन्म दिया है। कांग्रेस पार्टी ने नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन को शुभकामनाएँ दीं और साथ ही भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 1952 के ऐतिहासिक विचारों को याद किया। उनका कहना था कि अगर लोकतंत्र विपक्ष की स्वतंत्र और निष्पक्ष आलोचना की अनुमति नहीं देता तो वह तानाशाही में बदल सकता है।

इस पूरी बहस को समझने के लिए हम एक रोचक तुलना कर सकते हैं Hungary vs Portugal फुटबॉल मुकाबले से। जिस तरह मैदान पर दोनों टीमें अपनी-अपनी रणनीति और ताकत से खेलती हैं, उसी तरह संसद और राजनीति में भी सरकार और विपक्ष का खेल चलता है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ दांव लोकतांत्रिक परंपराओं और जनता के विश्वास पर होता है।

कांग्रेस का रुख और लोकतंत्र की याद दिलाना

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि डॉ. राधाकृष्णन सिर्फ बोलते नहीं थे बल्कि अपने पद पर रहते हुए उन्हीं सिद्धांतों को निभाते थे। उन्होंने निष्पक्षता, पारदर्शिता और विपक्ष की स्वतंत्र आलोचना को लोकतंत्र की रीढ़ बताया था।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी उपराष्ट्रपति चुने जाने पर राधाकृष्णन को शुभकामनाएँ दीं और साथ ही विपक्ष के साझा उम्मीदवार बी. सुधर्शन रेड्डी का आभार व्यक्त किया। यह वही स्थिति है जैसे Hungary vs Portugal मैच में हार-जीत के बावजूद दोनों टीमों के खिलाड़ियों को उनके संघर्ष के लिए सराहा जाता है।

चुनावी नतीजे और विपक्ष की एकजुटता

एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को 452 वोट मिले जबकि विपक्ष के उम्मीदवार को 300 वोट प्राप्त हुए। यह अंतर काफी था, लेकिन विपक्ष ने 40% वोट हासिल कर यह दिखा दिया कि उसकी एकजुटता और मजबूती बढ़ रही है।

जयराम रमेश ने इसे बीजेपी की “अंकगणितीय जीत” लेकिन “नैतिक और राजनीतिक हार” करार दिया। यानी परिणाम भले ही सत्ताधारी दल के पक्ष में रहा हो, लेकिन विपक्ष ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।

लोकतंत्र और फुटबॉल की समानता

अगर आप गौर करें तो राजनीति और खेल दोनों में कई समानताएँ हैं। Hungary vs Portugal मैच में दोनों टीमें बराबरी का जोर लगाती हैं। हंगरी ने मैच में शुरुआती बढ़त ली, लेकिन आखिरकार पुर्तगाल ने वापसी करके जीत दर्ज की।

उसी तरह राजनीति में भी विपक्ष सरकार पर दबाव डालता है और अपनी ताकत दिखाता है। जीत भले ही सत्ता पक्ष की हो लेकिन विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र को संतुलित रखने में अहम होती है।

क्यों ज़रूरी है विपक्ष की मज़बूती?

  • विपक्ष जनता की आवाज़ बनकर सरकार को उसके निर्णयों पर सोचने के लिए मजबूर करता है।

  • संसद में सार्थक बहस तभी संभव है जब दोनों पक्ष खुलकर अपने विचार रखें।

  • डॉ. राधाकृष्णन का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1952 में था – लोकतंत्र को बचाने के लिए निष्पक्षता, स्वतंत्र आलोचना और पारदर्शिता ज़रूरी है।

निष्कर्ष

कांग्रेस द्वारा उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद दी गई प्रतिक्रिया हमें यह सिखाती है कि लोकतंत्र में हार-जीत से ज़्यादा ज़रूरी है सिद्धांतों की रक्षा करना। ठीक उसी तरह जैसे Hungary vs Portugal मुकाबले में खेल का असली मज़ा सिर्फ जीत में नहीं बल्कि खिलाड़ियों की जुझारूपन और खेल भावना में छिपा होता है।

भारत की राजनीति को भी यही खेल भावना अपनाने की आवश्यकता है, ताकि लोकतंत्र मज़बूत हो और हर आवाज़ को सम्मान मिल सके।

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