सेबी का बड़ा फैसला: इक्विटी डेरिवेटिव्स की अवधि बढ़ाने की तैयारी

सेबी का बड़ा फैसला: इक्विटी डेरिवेटिव्स की अवधि बढ़ाने की तैयारी

भारतीय शेयर बाजार में डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (Equity Derivatives) तेज़ी से बढ़ रही है। लेकिन एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में 90% से अधिक ट्रेडर्स लगातार नुकसान उठा रहे हैं। इसी को देखते हुए बाजार नियामक SEBI (सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) अब डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट की अवधि (Tenure) और मेच्योरिटी बढ़ाने की योजना बना रहा है।

सेबी चेयरमैन का बयान

मुंबई में आयोजित एक इंडस्ट्री इवेंट के दौरान SEBI चेयरमैन तुहिन कांत पांडे ने कहा कि यह योजना अभी कॉन्सेप्चुअल स्टेज में है। उद्देश्य यह है कि अनियंत्रित ट्रेडिंग और निवेशकों के घाटे को कम किया जा सके।

डेरिवेटिव्स मार्केट पर क्यों आई नज़र?

  • पिछले कुछ वर्षों में रिटेल निवेशकों की वजह से डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग में तेज़ उछाल आया है।

  • सेबी ने पहले ही कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी लिमिट और लॉट साइज बढ़ा दिए थे ताकि ऐसे सौदे महंगे हो जाएं और केवल समझदार निवेशक ही इसमें शामिल हों।

  • इसके बावजूद बड़े पैमाने पर छोटे निवेशकों को घाटा झेलना पड़ा है।

बीएसई और एंजल वन के शेयरों पर असर

इस खबर के बाद बीएसई (BSE Ltd) और डिस्काउंट ब्रोकर एंजल वन (Angel One Ltd) के शेयर लगभग 5% गिर गए।

  • BSE की आय का 50% हिस्सा डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से आता है।

  • Angel One की आय का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा इसी से जुड़ा है।

मैनिपुलेशन रोकने के लिए नई यूनिट

सेबी के Whole-Time Member कमलेश वर्श्नेय ने बताया कि अब एक डेडिकेटेड यूनिट बनाई गई है, जो स्टॉक मार्केट मैनिपुलेशन के पैटर्न्स को पहचानने और रोकने का काम करेगी।

जेन स्ट्रीट केस

हाल ही में सेबी ने अमेरिका स्थित फर्म Jane Street को अस्थायी रूप से बैन किया था। उस पर आरोप था कि उसकी ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी ने प्रमुख स्टॉक मार्केट इंडेक्स में हेरफेर किया। हालांकि कंपनी ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि उसकी रणनीतियाँ केवल सिंपल आर्बिट्रेज पर आधारित थीं।

ग्रे-मार्केट को भी मिलेगा रेगुलेटेड प्लेटफॉर्म

सेबी प्रमुख ने यह भी बताया कि कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय और स्टॉक एक्सचेंज के साथ मिलकर एक रेगुलेटेड ग्रे-मार्केट प्लेटफॉर्म तैयार किया जाएगा। यहाँ अनलिस्टेड शेयरों की खरीद-फरोख्त पारदर्शिता के साथ हो सकेगी।

निष्कर्ष

सेबी का यह कदम भारतीय शेयर बाजार में पारदर्शिता (Transparency) और निवेशकों की सुरक्षा (Investor Protection) के लिए अहम साबित हो सकता है। अगर इक्विटी डेरिवेटिव्स की अवधि बढ़ाई जाती है, तो इससे निवेशक अधिक समझदारी से फैसले ले पाएंगे और बार-बार छोटे ट्रेड्स करने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

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