रघुराम राजन का कहना, भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी, लेकिन, भारत ने हाल ही में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। इससे पहले केवल अमेरिका और चीन ही भारत से आगे हैं। इस आर्थिक तरक्की पर देश में गर्व और उत्साह की लहर है, लेकिन इसी बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक सच्चाई का आईना दिखाया है जो भारत के लिए एक चेतावनी भी हो सकती है।
रघुराम राजन का कहना, भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी है पर अधूरी है
वर्ष 2025 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जापान और जर्मनी से अधिक हो जाएगा, और भारत तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। यह उपलब्धि इस बात का संकेत है कि भारत एक वैश्विक आर्थिक शक्ति बन रहा है। भारत के सेवा क्षेत्र, डिजिटल क्रांति, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और निवेश के कारण इस वृद्धि को बल मिला है।
रघुराम राजन का कहना हमारे पास नहीं है भारतीय अर्थव्यवस्था बनाने के लिए कोई विशेष कंपनी
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा हमारे पास एक भी ऐसी कंपनी नहीं जो भारतीय अर्थव्यवस्था बनने की कगार पर हो भारतीय समय दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है जापान और जर्मनी को भी भारत ने पीछे छोड़ दिया है लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन इससे संतुष्ट नहीं हैं।
रघुराम राजन का कहना ग्लोबल इनोवेशन नेतृत्व के बिना हमारी उपलब्धि खोखली
रघुराम राजन ने कहा भारत भले ही जापान जर्मनी को छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है लेकिन ग्लोबल इन्नोवेशन नेतृत्व के बिना हमारी उपलब्धि खोखली है टाइम्स ऑफ़ इंडिया के इंटरव्यू में रघुराम राजन ने ऐसा कहा रघुराम राजन शिकागो को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी रह चुके हैं उन्होंने बड़े पैमाने पर घरेलू व सरकारी समर्थन के बावजूद ग्लोबल स्तर पर पहचान बनाने में देश की कमी को उजागर किया
क्या कहा रघुराम राजन ने ?
रघुराम राजन ने कहा कि हमारे पास एक भी ऐसी कंपनी नहीं जिससे कि हम विश्व भर में पहचान पा सके। हमारे पास एक भी ऐसी कंपनी नहीं है जो वैश्विक पहचान रखती हो। न हमारे पास सोनी है, न मर्सिडीज़ है, न टोयोटा और न ही पोर्श जैसी कोई ब्रांड।”
रघुराम राजन की चिंता: क्या यह विकास खोखला है?
हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा कि आर्थिक आंकड़े भले ही अच्छे दिख रहे हों, लेकिन अगर भारत वैश्विक नवाचार और ब्रांड पहचान में पीछे रह गया तो यह विकास “खोखला” साबित हो सकता है। रघुराम राजन का मानना है कि जब तक भारत ग्लोबल इनोवेशन लीडरशिप में भूमिका नहीं निभाएगा, तब तक हमारी आर्थिक शक्ति अधूरी मानी जाएगी।
क्या है रघुराम राजन का मुख्य तर्क?
रघुराम राजन ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में स्टार्टअप और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से नए आइडिया तो जन्म ले रहे हैं, लेकिन उन्हें ग्लोबल स्केल तक ले जाने के लिए पर्याप्त नीति, समर्थन और रिसर्च इकोसिस्टम नहीं है। उनके अनुसार, भारत में सरकारी प्रोत्साहन और संसाधनों के बावजूद अभी तक ऐसी कंपनियां नहीं उभरी हैं जो दुनिया भर में भारतीय इनोवेशन का चेहरा बन सकें।
उदाहरण के तौर पर जापान और जर्मनी
जापान के पास सोनी, टोयोटा, होंडा, जैसे ब्रांड हैं तो जर्मनी के पास मर्सिडीज़, बीएमडब्ल्यू, पोर्श जैसी वैश्विक कंपनियां हैं। इन कंपनियों ने केवल अपने देश की आर्थिक पहचान नहीं बनाई, बल्कि वैश्विक नवाचार में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।राजन के अनुसार भारत में इस स्तर की ब्रांड वैल्यू और टेक्नोलॉजिकल लीडरशिप अभी नहीं है।
भारत में किस दिशा में सुधार की ज़रूरत?
- शिक्षा और अनुसंधान (R&D) में अधिक निवेश
- इनोवेशन फ्रेंडली पॉलिसी, जो स्टार्टअप्स को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाए
- बिजनेस इकोसिस्टम में सुधार, जहां नियम सरल हों, और इंटरनेशनल पार्टनरशिप को बढ़ावा मिले
- ब्रांड बिल्डिंग और मार्कटिंग स्ट्रेटेजी, जिससे भारतीय कंपनियों की अंतरराष्ट्रीय पहचान बने
क्या भारत के पास कोई संभावित ब्रांड हैं?
भारत में Infosys, TCS, Reliance Jio, Ola, Zomato, Byju’s, Tata Motors जैसे ब्रांड हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम ब्रांड हैं जो विश्व स्तर पर सोनी या मर्सिडीज जैसी पहचान रखते हैं। ये कंपनियां अभी भी भारतीय बाजार में केंद्रित हैं और उनकी अंतरराष्ट्रीय पकड़ सीमित है।
निष्कर्ष: उपलब्धि के साथ आत्मनिरीक्षण जरूरी
भारत का तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना निश्चित रूप से गर्व का विषय है। लेकिन जैसा कि रघुराम राजन ने कहा, सिर्फ GDP आंकड़ों से वैश्विक ताकत नहीं बनती। इसके लिए जरूरी है कि भारत के पास ऐसी कंपनियां हों जिनका नाम लेते ही पूरी दुनिया भारत को याद करे।
जब तक भारत इनोवेशन, रिसर्च, और ब्रांडिंग पर ध्यान नहीं देगा, तब तक यह विकास अधूरा रह सकता है। भारत को अब केवल “उभरती” नहीं, बल्कि “नेतृत्वकारी” अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में सोचना होगा।