महाअवतार नरसिम्हा एक ऐसी फिल्म है जिसने भारत वर्ष के सदियों पुराने सनातन धर्म के आध्यात्म और भक्ति के मार्ग को पूरी दुनिया को दिखाया है। इस फिल्म में भक्ति और धर्म के रास्ते पर चलने वाला एक राक्षस राजकुमार अपने ही पिता को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करता है। राक्षस राजकुमार अपने पिता के अधर्म से खड़े किए गये राजपाट के विरुद्ध होकर और प्राण संकट में आने पर भी अपने लक्ष्य भक्ति मार्ग पर टिका रहता है।
इस फिल्म के विषय में संक्षिप्त विवरण
इस फिल्म को अश्विनी कुमार ने डायरेक्ट किया है। यह 3D एनिमेटेड एनीमेशन फिल्म है। इस फिल्म का प्रीमियम 55 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया में नवंबर 2024 में हुआ था। 25 जुलाई 2025 को इस फिल्म को पहली बार थिएटर में हिंदी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल और मलयालम भाषा में उपलब्ध कराया गया।
महाअवतार नरसिंह है भारत की सबसे अधिक कमाई करने वाली पहले भारतीय एनिमेटेड फिल्म
इस फिल्म ने अभी तक 210 करोड़ रुपए की कमाई की है और यह भारत की सबसे अधिक कमाई करने वाली पहली बड़ी एनिमेटेड फिल्म बनी है। अमेरिका में इसकी कमाई 1 मिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है जो की 2025 की सबसे सफल हिंदी फिल्मों में से एक है। यह वर्ष 2025 की आठवीं सबसे बड़ी हिट फिल्म बनी है। इस फिल्म में एक छोटे बच्चे की भक्ति को दिखाया गया है। बच्चों से लेकर बड़ों तक पर इसका प्रभाव अत्यधिक सराहनीय पड़ा है। अपने गरिमामय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और संस्कार के विषय में जानकारी पा सभी ने भक्त प्रहलाद की भक्ति को माना है। इस फ़िल्म को अनेक स्कूलों ने अपने बच्चों को शिक्षा संस्कार की दृष्टि से दिखाया है।
क्या है इस फिल्म की कहानी
हिरण्यकश्यप का अधर्म से त्रिलोक का राजा बनना
हिरण्यकश्यप एक शक्तिशाली राक्षस है जो भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता है। भगवान विष्णु की खोज में वो तीनों लोकों में हाहाकार मचा देता है।उसका भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी लोक को समुद्र में डूबो देता है। जिसका भगवान विष्णु वराह अवतार लेकर वध करते हैं और पृथ्वी लोक को समुद्र से बाहर निकालते हैं। भगवान विष्णु का वध करने के लिए हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी की तपस्या करता है। वो ब्रह्मा जी से अपने कभी भी किसी मनुष्य या जानवर के द्वारा, किसी भी हथियार से, दिन या रात किसी भी समय ना मारे जाने का वरदान लेता है। भगवान ब्रह्मा उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान भी दे देते हैं। सोचिए भगवान एक राक्षस को वरदान दे रहे हैं अजर अमर होने का उनके पास विकल्प ही कोई नहीं है क्योंकि उसने की है उनकी भक्ति। हिरण्यकश्यप इस वरदान के बाद तीनों लोकों में प्रलय ला देता है। भगवान विष्णु की खोज में विष्णु भक्तों पर करता है अनगिनत अत्याचार। और बन जाता है तीनों लोगों का राजा खुद भगवान बनकर कराने लगता है अपनी पूजा।
प्रहलाद का जन्म
भगवान तो भगवान ही होते हैं उन्हें पता होता है कब क्या कैसे होने वाला है तो जब हिरण्यकश्यप उनका वध करने के लिए तपस्या में लीन था तब देवराज इंद्र हिरण्यकश्यप की तपस्या से घबराकर हिरण्यकश्यप की गर्भवती पत्नी कयाधु का वध करने का निश्चय करते हैं और एक बार फिर भगवान अपनी लीला दिखाते हैं अपने सर्वप्रिय भक्त नारद जी को भेज कर। नारदजी कयाधु की रक्षा करते हैं वो देवराज इंद्र को ऐसी प्रेरणा देते हैं कि वह कयाधु को लेकर एक आश्रम में जाते हैं और वहां कयाधु के गर्भ में ही प्रहलाद को भक्ति मार्ग की प्रेरणा मिलती है और ऐसे माहौल में अंकुरण होता है भगवान के सबसे छोटे और सबसे प्यारे भक्त प्रहलाद का।
विषम परिस्थितियों में भी ईश्वर भक्ति में डूबे रहना
प्रहलाद जन्म के बाद ही विष्णु भक्ति में तल्लीन रहते हैं। उन्हें नाना उपायों से उनके पिता का नाम लेने उनकी पूजा करने के लिए कहा जाता है पर वह तो विष्णु प्रिय जो हैं अपने साथ-साथ अपने मित्रों को भी वह भक्ति के रंग में रंगते जाते हैं। और फिर उनके पिता हिरण्यकश्यप उन्हें अपने आश्रम में भेज कर गुरुजनों से उन्हें अपने नाम का जप कराने के लिए कहते हैं पर प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते हैं और ऐसे में हिरण्यकश्यप उनसे नाराज होकर उन्हें पागल हाथियों से कुचलवाने का आदेश देते हैं। पागल हाथी भी प्रहलाद की ईश भक्ति से निशब्द हो जाते हैं और फिर हिरण्यकश्यप प्रहलाद को गहरी घाटी में फिकवा देते हैं। जहां से भी प्रहलाद वापस बचकर आ जाते हैं।
हिरण्यकश्यप प्रहलाद को समाप्त करने के लिए अपनी बहन होलिका के पास जाते हैं जिन्हें कभी ना जलने की सिद्धि प्राप्त थी। जहां होलिका कहती है कि मेरी यह सिद्धि सिर्फ मेरी आत्मरक्षा के लिए ही है। तब हिरण्यकश्यप अपने भाई हिरण्याक्ष का नाम लेकर होलिका को प्रहलाद को जलाने के लिए तैयार करते हैं। होलीका प्रहलाद को लेकर आग की जलती चिता में बैठ जाती है जहां वह खुद तो जल जाती है पर प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं होता। हिरण्यकश्यप इन सारी घटनाओं से इतना चिढ़ जाते हैं कि वो प्रहलाद को समुद्र में डूबोने के लिए अपने कुलगुरु शुक्राचार्य को भेजते हैं लेकिन वरुण देवता वहां से भी प्रहलाद को सकुशल वापस भेज देते हैं।
हिरण्यकश्यप की मृत्यु
प्रहलड़की सकुशल घर वापस आने पर हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से कहते हैं कि अगर तुम्हारा विष्णु सर्वत्र व्याप्त है तो फिर वह इस खंभे में भी होगा और फिर खंभे में से महावतार नरसिंह अवतरित होते हैं और हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर बैठाकर, घर की देहरी पर, शाम के समय, अपने नाखूनों से वध कर त्रिलोक को उसके अत्याचार से मुक्त करते हैं। भक्त वत्सल भगवान अत्याचारी हिरण्यकश्यप का भी वध अपने हाथों से कर उसे मुक्ति प्रदान करते हैं।