ऑपरेशन महादेव में चाइनीस अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम के कारण पहलगाम हमले से जुड़े आतंकियों समेत मारा गया लश्करे तैयबा का कमांडर हाशिम मूसा आइए जानते हैं कैसे
क्या है ऑपरेशन महादेव
पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन महादेव दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। पहलगाम आतंकी हमले का प्रतिशोध तो हमने पाकिस्तान से, पाकिस्तान के आतंकियों से ऑपरेशन सिंदूर के द्वारा ले लिया लेकिन पहलगाम हमले के मुख्य आरोपी को ढूंढना संभव हो पाया ऑपरेशन महादेव के द्वारा। ऑपरेशन महादेव में हमने उन छुपे आतंकियों को ढूंढा
जिन्होंने पहलगाम हमले को अंजाम दिया था। हमारी सेना ने जम्मू कश्मीर में श्रीनगर के पास लैंड पास इलाके में इन आरोपियों को मार गिराया 2 दिन तक यह ऑपरेशन ऑपरेशन महादेव चला और इसके बाद इन आतंकियों से पहलगाम हमले का बदला लिया गया।
कैसे पड़ी ऑपरेशन महादेव की नींव
ऑपरेशन महादेव की नींव तो ऑपरेशन सिंदूर के बाद ही पड़ गई थी हमारे प्रधानमंत्री ने कह दिया था कि जब तक हम आतंकियों को मार नहीं लेंगे तब तक हमारा ऑपरेशन सिंदूर पूरा नहीं होगा। कश्मीर की हर घाटी, हर नुक्कड़ हर चौराहे पर लगातार तलाशी अभियान चला और 96 दिनों तक यह आतंकी छुपे रहे इसके बाद एक चीनी अल्ट्रा कम्युनिकेशन सिस्टम उनके पकड़े जाने की बड़ी वजह बनी।
क्यों नाम पड़ा इस ऑपरेशन का ऑपरेशन महादेव?
आतंकी माउंट महादेव नामक एक पहाड़ी में छुपे थे। इसलिए इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन महादेव दिया गया। 28 जुलाई को सुरक्षाबलों ने माउंट महादेव को घेरना शुरू किया। आतंकियों के पास थे एक-47 राइफल्स, ग्रेनेड और गोला बारूद। आतंकियों और सुरक्षाबलों के भी 6 घंटे तक गोलीबारी और फायरिंग की गई।
अंत में भारतीय सेना को एक बड़ी कामयाबी मिली। पहलगाम हमले के आरोपियों समेत इसमें इसमें लश्करे तैयबा का कमांडर हाशिम मूसा भी मारा गया।
क्या है ऑपरेशन महादेव में चीनी सिस्टम जिसके कारण पकड़े गए आतंकी
26 अप्रैल 2025 को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीर में हाई अलर्ट घोषित किया गया। हर गली हर चौराहे हर चेक पोस्ट की निगरानी लेने के बाद भी कहीं कोई सुराग नहीं मिला। कई दिनों तक घने जंगलों की गहन तलाशी हुई पर कहीं कोई संकेत कोई सुराग न मिला और फिर ऐसा लगने लगा कि शायद उन्हें ढूंढना संभव ही नहीं है
लेकिन तभी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कुछ ऐसा महसूस किया जो कि उनके लिए नया था। सुरक्षा एजेंसियों ने जंगल के घने इलाके में एक कम्युनिकेशन सिस्टम को एक्टिव पाया और यह था एक चीनी अल्ट्रा वीडियो कम्युनिकेशन सिस्टम। चाइनीस अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर आतंकी बच रहे थे अभी तक।
सुरक्षा एजेंसियों ने कैसे ढूंढ निकाला इस चीनी कम्युनिकेशन सिस्टम को?
चाइनीस अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर आतंकी बच रहे थे। जब सुरक्षा एजेंसी को तलाशी अभियान में सफलता नहीं मिली तब उन्होंने तकनीकी रूप से तलाश अभियान शुरू किया उन्होंने थर्मल इमेजिंग ड्रोन ह्यूमन इंटेलिजेंस सैटेलाइट ट्रैकिंग और सिंगल इंटरसेप्शन तकनीक के जरिए इस खोज अभियान को जारी रखा और यहां उन्हें मिला एक ऐसा संकेत जिसने शुरुआत की ऑपरेशन महादेव की और समाप्ति की ऑपरेशन सिंदूर की।
क्या है वह चीनी अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम?
यह कम्युनिकेशन सिस्टम बहुत कम प्रयोग में आता है। इसकी पहचान तभी हो पाती है जब कोई लगातार सुरक्षित फ्रीक्वेंसी पर डाटा ट्रांसमिट करता है। यह सिस्टम चीन के सैनिक उपयोगिता तकनीक है जिसे हाई फ्रीक्वेंसी और अल्ट्रा हाई फ्रिकवेंसी बैंड्स पर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है इसमें मजबूत इंक्रिप्शन होता है और यह दुर्गम पहाड़ी इलाकों में संचार की सुविधा प्रदान करता है।
इसे सन 2016 में भी आतंकियों द्वारा इस्तेमाल किया गया था। लश्कर , जैश जैसे संगठन इस प्रयोग कर रहे थे। इसके सिग्नल्स को इंटरसेप्ट करना या ब्लॉक करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए सुरक्षा एजेंसियां इसके विषय में जानकारी नहीं उपलब्ध कर पा रही थी। इस सिस्टम के संकेतों के द्वारा सुरक्षा बलों को संकेत मिले कि आतंकी यही के ही पास में छुपे बैठे हैं।