वैज्ञानिकों ने ‘ज़ॉम्बी हिरण’ बीमारी, जिसे क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज (CWD) कहा जाता है, के इंसानों में फैलने की संभावना को लेकर चिंता जताई है। यह प्राणघातक और लाइलाज बीमारी वर्तमान में हिरण और अन्य खुरदार जानवरों को प्रभावित करती है। यह बीमारी पागलपन जैसे लक्षण और अंततः मृत्यु का कारण बनती है। लार, खून, और मल जैसे शारीरिक तरल पदार्थों से फैलने वाली यह बीमारी हाल ही में जंगली सूअरों में पाई गई है, जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि यह इंसानों में भी फैल सकती है।
क्या यह महामारी का रूप ले सकती है?
प्रिऑन रोगों के इंसानों में फैलने की संभावना लंबे समय से वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय रही है। मिनेसोटा डिपार्टमेंट ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज द्वारा वित्त पोषित एक नई रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि CWD इंसानी स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है। मिनेसोटा विश्वविद्यालय के प्रख्यात महामारी विशेषज्ञ डॉ. माइकल ओस्टरहोम ने कहा, “अगर जंगली सूअर इस बीमारी से संक्रमित हो सकते हैं, तो घरेलू सूअर भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इससे सूअर और मवेशी बाजारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।”
यह बीमारी पकाने पर भी खत्म नहीं होती, जिससे इसका खतरा और बढ़ जाता है। शिकारियों को विशेष रूप से सतर्क रहने की सलाह दी गई है, क्योंकि संक्रमित हिरण को मारने या उसका मांस खाने से संक्रमण फैल सकता है। इस बीमारी के लक्षण—जैसे लार गिरना, असंतुलन, आक्रामकता, और गंभीर वजन कम होना—संक्रमण के एक साल बाद तक नजर नहीं आ सकते, जिससे शुरुआती पहचान मुश्किल हो जाती है।
क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज (CWD) क्या है?
CWD प्रिऑन रोगों के परिवार से संबंधित है, जो तब होती हैं जब शरीर में प्रोटीन गलत तरीके से मुड़ जाते हैं, जिससे गंभीर न्यूरोलॉजिकल क्षति होती है। संक्रमित जानवरों में धीरे-धीरे वजन कम होना, समन्वय की कमी, और व्यवहारिक परिवर्तन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जो अंततः मृत्यु का कारण बनते हैं। अन्य प्रिऑन रोगों में गायों में पाई जाने वाली ‘मैड काउ डिजीज’ (BSE) और भेड़-बकरियों में ‘स्क्रेपी’ शामिल हैं।
इस समय CWD का कोई टीका या इलाज उपलब्ध नहीं है। इसकी अत्यधिक संक्रामक प्रकृति इसे नियंत्रित करना कठिन बनाती है। विशेषज्ञों को डर है कि इस बीमारी के नए प्रकार उभर सकते हैं, जो इंसानों को संक्रमित करने में सक्षम होंगे।
बढ़ती चिंताएं: क्या यह इंसानों को संक्रमित कर सकती है?
CWD के इंसानों पर प्रभाव को लेकर चर्चा 2024 में तेज हो गई, जब अमेरिका में क्रेउत्ज़फेल्ड-जैकब डिजीज (CJD) के कई मामले सामने आए। हालांकि CDC ने पुष्टि की कि इन मामलों और CWD के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन शोधकर्ता सतर्क बने हुए हैं। CWD में पाए जाने वाले प्रिऑन मस्तिष्क की कोशिकाओं के संचार को बाधित करते हैं, जिससे CJD जैसी तबाही हो सकती है।
सेंटर फॉर इंफेक्शियस डिजीज रिसर्च एंड पॉलिसी के सह-निदेशक डॉ. कोरी एंडरसन ने BSE के प्रकोप का उदाहरण देते हुए कहा, “कोई यह नहीं कह रहा है कि CWD निश्चित रूप से इंसानों में फैलेगी, लेकिन इस तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण है। इतिहास ने दिखाया है कि जब ज़ूनोटिक बीमारियां उभरती हैं, तो चीजें कितनी तेजी से बिगड़ सकती हैं।”
सतर्कता की आवश्यकता
CWD तेजी से फैल रही है और अब यह अमेरिका के कम से कम 33 राज्यों, जिनमें पेन्सिलवेनिया के क्षेत्र शामिल हैं, में दर्ज की गई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सक्रिय कदम उठाने पर जोर दे रहे हैं, जैसे कि जागरूकता अभियान, वन्यजीवों की जांच, और मांस स्रोतों की कड़ी निगरानी।
हालांकि इंसानों में संक्रमण के मामले अभी तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन इस बीमारी की उच्च संक्रामकता, उपचार की कमी, और गंभीर न्यूरोलॉजिकल प्रभाव इसे संभावित स्वास्थ्य आपातकाल का गंभीर खतरा बनाते हैं। इस संभावना के लिए तैयार रहना केवल सतर्कता नहीं, बल्कि आवश्यकता है।